मंदिरों के ड्रेस कोड (dress code of temples) पर छोटा सा व्यंग, मंदिरों का ड्रेस कोड क्या है? What is the dress code of temples?
जैसे जैसे ये खबर अलग अलग धाम और मंदिरो से निकल कर सामने आ रही है, वैसे ही ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे अब ज्यादातर मंदिर प्रशासन भी नीद से जागकर उबासी ले रहे है। यह बहुत ही सराहनीय कदम है, क्युकी आज से कुछ साल पहले नेता ही कहने लगे थे की "जो लोग मंदिर जाते हैं वही महिलाओं को छेड़ते हैं", Source मंदिर प्रशासन को तभी जवाब देना चाहिए था।
आज जब इस खबर को मैंने इंटरनेट पर सर्च किया तो पता चला, अन्य देशो के मंदिरो में Dress Code पहले से ही वहां की संस्कृति के अनुसार लागू है। जैसे कि Dress Code in Atlanta Hindu Temple और Dress Code in Canada Richmond Hill Hindu Temple.
मंदिरों का ड्रेस कोड क्या है?
अभी इस बारे में ज्यादा पता तो नहीं चला, लेकिन कुछ मीडिया सूत्रों से कुछ बातें पता चल रही है, की ज्यादातर मंदिर प्रशासन उन्ही लड़कियों और औरतो को ही प्रवेश देंगे जिन्होंने पारम्परिक परिधान पहने हुए है। इसलिए भक्तो को भी अपने घर की पुरुषो, बहनों और माताओं को इस बारे में बताना चाहिए कि ऐसे कोई कपडे न पहने कि जिससे मंदिर के बाहर या रास्ते में खड़े विधर्मी मनचले या छिछोरे ललचाई नज़रो से Body Scan करे। अर्थात शरीर ढका हुआ होना चाहिये, और भारतीय पहनावा होना चाहिए। अन्यथा हमारे घर की माताओ, पुरुषो और बहनों को दर्शन से वंचित होना पड़ सकता है।
अगर किसी महिला और पुरुष को लगता है कि उनके अधिकार छीन लिए गए छोटे कपडे पहनने के, तो वे मंदिर प्रांगड़ के बाहर अपने अधिकारों का प्रदर्शन कर सकते है, उससे किसी को कोई आपत्ति नहीं है।
क्युकी अगर भगवान् के घर भक्त सम्मान के साथ आएंगे तो निश्चित ही जीवन में उन्हें भी सम्मान ही मिलेगा।
इसका एक उदाहरण आपको देता हूँ -
दिल्ली में मैं अब कुछ लड़कियां माथे पर चन्दन का तिलक लगा कर ऑफिस जाती है, तो ज्यादातर बस और बैटरी रिक्शे के सहयात्री इतना सम्मान करते है, जिसे में देखकर एक गर्व का अनुभव करता हूँ और उस तिलक के चमत्कार का इतना अनुभव होता है कि मैं खुद उनको बहुत ज्यादा सम्मान से देखता हूँ, और तो और, मैं स्वयं उनके आगे अपने आपको एक नीच मनुष्य की भांति अनुभव करता हूँ, इस कारण से मन ही मन उन बहनों और माताओ को प्रणाम तक कर लेता हूँ। भगवान की कृपा से मैं सनातनी हूँ, अवश्य पिछले जन्म में कोई पुण्य कार्य किया होगा। तो शायद इसलिए मन में इस प्रकार का भाव उत्पन्न होता है। लेकिन जो भी हो, सच्चा सुख यही है, यही है, और यही है। ऐसी अनुभूति आज तक नहीं हुई।
लेकिन अन्य लोग खिसिया कर रह जाते है, उनकी हिम्मत नहीं होती कि उन माताओं से नज़रे मिला ले, इतना बड़ा प्रभाव होगा, ऐसा मैंने कभी नहीं सोचा था।
सभी मंदिर प्रशासन से यह भी प्रार्थना है कि-
अपने आपको सरकार से मुक्त करवाए, या सभी पंथो के चंदे पर भी सरकार अधिकार रखे, इस भेदभाव से मुक्त होना आवश्यक है क्युकी इस चंदे और चढ़ावा की राशि से सनातन शिक्षा, भंडारा, और सनातन धर्म के कल्याण में खर्च होना चाहिए। सविंधान के होते हुए भी इस प्रकार का भेदभाव सहना भी अपराध है।
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