भारत में सनातनियों की मंदिरो और सरकारों से सनातन स्कूल की मांग

भारत में सबसे अच्छा गुरुकुल कौन सा है, भारतीय गुरुकुल शिक्षा पद्धति और जीवन मूल्य, गुरुकुल की क्या विशेषता थी

सनातन धर्म के लोग भारत में बहुसंख्यक है लेकिन बहुसंख्यक होने का भी उन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा है न ही सरकार से और न ही हमारे सनातन गुरुओं से, जिस कारण से हमारे समाज में अपनी संस्कृति का पालन करना भी मुश्किल हो गया है। बात बात पर साथ के मित्र ही आश्रम, PK इत्यादि मूवी का सहारा लेकर हमें मुर्ख प्रमाणित करने में तत्पर रहते है, और हम हमेशा की तरह बचाव की मुद्रा में रहते है। 

Sanatani's demand for Sanatan school from temples and governments in India

Those people will also be in favor of this, who wanted a hospital instead of Shri Ram Mandir.

अगर हमें बचपन से अपने वेद, उपनिषद, पुराण आदि का ज्ञान होता तो बचाव की मुद्रा में नहीं अपितु हमें पता होता है कि सत्य क्या है। बिना सत्य के ज्ञान के हमें तिलक लगाने या कुर्ता पहनने में शर्म आती है तो वही अन्य धर्मो के लोग पगड़ी, टोपी, कोट इत्यादि गर्व के साथ पहनते है, जो कि सराहनीय भी है। 

पहले तो हमारी पढाई में संस्कृत विषय होता भी था, अब शायद बैन हो गया है। सिर्फ कुछ स्कूल या यूनिवर्सिटी ही बची है।  इसलिए  मैं अपने सनातनी गुरुओ के चरणों में दंडवत प्रणाम करके अनुरोध करना चाहूंगा कि सनातन धर्म के लोगो के लिए स्कूल खोले जाने के लिए सरकार से आग्रह करे या खुद मंदिर प्रशासन से आग्रह करे। जब इस देश में कान्वेंट, मदरसा अन्य स्कूल चल रहे है तो बहुसंख्यको के साथ ये भेदभाव क्यों?

हम ज्यादातर सनातनी अज्ञानता के बोझ से दबे है, कोई भी स्कूल या ऑफिस में विधर्मी मित्र मंगलवार को ही पीने, खाने के लिए पार्टी करता है। जिसे ज्ञान होगा वो इसमें भाग नहीं लेगा, मना कर देगा कि ये हमारे लिए हराम है या निषेध है। लेकिन अनजाने में कोई गलती हो जाने पर हमारी कृपा रुक जाती है, भक्ति देवी हमसे नाराज़ हो जाती है और धीरे धीरे हम सरेंडर (धर्म परिवर्तन) की तरफ बढ़ने लगते है। घर की बच्चियां भी सरेंडर कर देती है, और हमारे कुल का विनाश हो जाता है, पहचान ख़त्म, सनातनी ख़त्म। 

इसलिए सनातन गुरुओं को जगह जगह सनातन स्कूल खुलवाने पर विचार करना चाहिए, जब सनातनी ही नहीं बचेंगे तो कौन गुरु जी कहेगा और कौन देवताओं का स्वागत सत्कार करेगा। 

हमारे पूर्वज बड़े ही महान और निडर थे जिन्होंने गुलामी के वर्षो में भयंकर यातनाये या भयंकर दुखी समय देखा होगा लेकिन अपने आप को सरेंडर नहीं किया, सत्य पर टिके रहे, इसलिए आज हम सनातनी बचे हुए है। 

क्या सेक्युलर होने का अर्थ बहुसंख्यको के अधिकार छीनकर, अल्पसंख्यकों में बांटना ही होता है? 

शायद इन्ही अधिकारों के लालच में बहुसंख्यक टूट-टूट कर अप्ल्संख्यक बन रहे है। और अल्पसंख्यक बनने के बाद मेरे अपने भाई बहुसंख्यक समाज से नफरत करने लगते है, नफरत भरने का काम विदेशी मीडिया या विदेशी पैसो से चलने वाले मीडिया, विदेशी पैसो से चलने बनने वाली बॉलीवुड फिल्मे, और विदेशी पैसो से चलने वाले संगठन (NGO) दिन रात करते रहते है । 

बहुसंख्यको के अधिकार तो छीने ही गए है साथ ही साथ उनके मंदिरो का पैसा भी हड़प लिया जाता है। अर्थात हमारे अधिकार गए, हमारे आदिवासी, वनवासी भाई गए, और हमारे मंदिरो का पैसा भी गया, उसके बाद भी ठाकुर, ब्राह्मण इत्यादि जातियों के नाम से सोशल मीडिया में गाली खाते रहते है, और अगर गलती से कही रिप्लाई कर दिया तो ऐसा पुलिस पकड़ती है कि उसकी जमानत भी नहीं होती। बात पुलिस तक होती तब भी सह लेते लेकिन अब नेता दो कदम और आगे आये, वे श्रीरामचरित मानस को ही फाड़ने लगे, उस पर टिप्पणी करने लगे।

हमारी इस सहनशीलता में भी BBC मुझमे कट्टरपंथ देख लेता है, इन लोगो को अपना अलग ही लेवल रहता है, मानवता को मापने का इनका पैमाना ही शायद चाइनीस है। 

BBC ने इस बारे में एक लेख लिखा कि - स्कूल में संस्कृत: कट्टरपंथ या रुचि?

संस्कृत स्कूल कैसा होना चाहिए -

में सर्प दर्ष्टि रखने वाला क्या देख सकता हूँ, या क्या बता सकता हूँ, लेकिन जैसी आजकल की पढाई नयी शिक्षा नीति के तहत बनायीं गयी है उसी प्रकार से ही हो, ताकि समय के हिसाब से रोजगार भी मिलता रहे लेकिन बस एक घंटा की पढाई वेद, पुराण, और उपनिषद की भी हो, ताकि हम शर्म के बोझ से झुके नहीं बल्कि सम्मान के साथ अपना जीवन जी सके, अर्थात आत्मरक्षा कर सके।

इसलिए सभी सनातन गुरुओं, जिसमे मेरा प्यारा इस्कॉन भी शामिल है, से करवद्ध प्रार्थना है कि इस विषय पर विचार करे। 


अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम् ।

 उदारचरितानां तु वसुधैवकुटुम्बकम् ॥


Disclaimer - मैंने यहाँ कोई भी नकारात्मक बात नहीं की है, और न ही किसी व्यक्ति, संस्था, जाति या धर्म के बारे में कोई टिपण्णी की है। यह एक व्यक्तिगत विचारमात्र है। इस देश में मदरसा, या कान्वेंट भी चले, कोई आपत्ति नहीं लेकिन हम पर भी दया की जाए बस यही भाव था। जिस तरह से गली गली में कान्वेंट और मदरसे है वैसे सनातन शिक्षा के लिए स्कूल क्यों नहीं। 

संस्कृत या सनातन धर्म के स्कूल के लिए, या बात के पक्ष में वे लोग भी होंगे -

जिन्हे श्री राम मंदिर की जगह हॉस्पिटल चाहिए था। 

जिन लोगो ने हमारे प्रभु राम की श्री रामचरित मानस का अपमान किया है। 

जिन लोगो ने सनातन धर्म के राजा श्रीराम को काल्पनिक बताया है। 


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भारत में सनातनियों की मंदिरो और सरकारों से सनातन स्कूल की मांग
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