Cencer in Ayurveda - अगर दिमाग में बबासीर की बीमारी के कारण विवेक लुप्त हो गया है, तो ये Opinion भी पढ़ सकते है। थोड़ा कड़वा लगेगा लेकिन आराम मिलेगा।
Lemon and turmeric can cure cancer, but can it cure conscience? what i think. अभी हाल ही में एक प्रसिद्द, और जाने माने खिलाडी ने अपना स्वयं का अनुभव क्या बताया कि कुछ लोगो और संस्थाओ की सुलग गयी। अर्थात
- पहली बात अब इस देश में कोई अपने अनुभव बताएगा तो अब उसे सिद्द करना होगा कि उसका अनुभव झूठा है या सच्चा।
- दूसरी बात ये कि लोग अपने अधिकारों के माध्यम से देश विरोधी नारे लगा सकते है। गाय का मांस खा सकते है, रामायण की प्रतियां पैरो से कुचल सकते है लेकिन अगर किसी ने आयुर्वेद की बात कर दी, तो उसको करोडो का मानहानि नोटिस दे दिया जाता है।
लेकिन ये लोग चुप रहते है, कब -
जब कोई प्राइवेट हस्पताल किसी से लाखो रुपये लेकर इलाज करता है, और उसी व्यक्ति के मरने पर पैसा उसके परिवार को वापस नहीं करते? तब लाश पर कब्ज़ा कर लेते है कि पैसे दोगे तब छोड़ेगे। उस समय, उस परिवार का कोई मान नहीं है जो कर्ज़े पर पैसा उठाकर इलाज करवाता है। उसके लिए मानहानि का नोटिस क्यों नहीं?
अभी हाल ही में समाचार प्रकाशित हुए थे, की आयुष्मान योजना से पैसा निकालने के लिए कई प्राइवेट हस्पतालो ने फ्रॉड किया था। तो जिन लोगो के हृदय अकारण फाड़ दिए गए, उनके अर्थहानि, मानहानि और पीड़ा का नोटिस क्यों नहीं? क्या इन्होने पीड़ितों को करोडो रुपये दिलवाने की कोशिश की?
क्या किसी ने पता करने की कोशिश की है कि निजी हस्पतालों में कितने प्रतिशत गर्भवती माताओं की डिलीवरी साधारण तरीके से करवाई जा रही है? या बिना बात के, पैसे के लिए पेट फाड़े जा रहे है ? कितने लोगों को कैसे नोटिस भेजे?
हालाँकि ऐसी हज़ारो नहीं,लाखों समाचार है जो गूगल न्यूज़ में इतिहास के रूप में अंकित है, उन्हें आप यहाँ से देख ले।
इतने प्रमाण होने के बाद यहाँ मेने किसी व्यवसाय पर या व्यक्ति विशेष पर कोई लांछन या आरोप नहीं लगाया, जो समाचार पड़े है उन याद दिलाया।
लेकिन एक व्यक्ति ने आयुर्वेद के बारे में स्वयं के अनुभव क्या बताया, उसने भी किसी व्यवसाय या व्यक्ति विशेष पर आरोप भी नहीं लगाया तो उसे करोड़ो का नोटिस भेज दिया। वो भी ये कहकर कि उसके अनुभव सुनकर अन्य मरीज़ो ने इलाज बंद कर दिया। अर्थात किसी के अनुभव मात्र सुनकर यदि कोई दूसरा मर जाए, तो उसको फांसी होगी? तो जिन हस्पतालो के अनुभव और इलाज से मृत्यु हो रही है उनके साथ क्या होना चाहिए? वे तो अनुभव बताने के पैसे लेते है, वो एक सर्विस है, सर्विस की कोई जिम्मेदारी नहीं, और फ्री के अनुभव की जिम्मेदारी करोडो के नोटिस के रूप में ?
क्या इनके पास कोई प्रमाण या डाटा है कि कितने कैंसर के मरीज़ो ने अपनी दवाई छोड़ दी? और उन्हें नींबू और हल्दी से नुकसान हुआ? वो भी किसी दूसरे के अनुभव सुनकर ? विपन्नता की भी हद है।
वाह इतनी चिंता?
फिर जो गूगल न्यूज़ में इतिहास के रूप में मृत लोग है उन कितने परिवारों को मानहानि, जनहानि, अर्थहानि का पैसा दिया? और जो समाचार में नहीं उनका क्या?
इतना विचार करने के लिए विवेक चाहिए, लेकिन विवेक किसी दवाई से नहीं बनता, उसके लिए ज्ञान चाहिए। इसलिए समस्या आयुर्वेद नहीं सनातन धर्म से है तो ज्ञान कहाँ से मिलेगा ?
समाचार जगत के कुछ पत्रकारों में विवेक अभी है, आप चाहे तो उनके अनुभव को भी पढ़ सकते है। थोड़ा कड़वा लगेगा लेकिन आराम मिलेगा।
डिस्क्लेमर - ये मेरे अपने स्वयं के विचार है, इसका किसी संस्था, व्यवसाय, व्यक्ति विशेष, धर्म या ज़ाति से कोई सम्बन्ध नहीं है।
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