अगर ब्राह्मण सत्य नहीं है तो फिर सत्य कुछ भी नहीं है। एक सच्चे ब्राह्मण की ज्ञान की शक्ति का उदाहरण चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य के इतिहास से ले सकते ह
अगर ब्राह्मण सत्य नहीं है तो फिर सत्य कुछ भी नहीं है। एक सच्चे ब्राह्मण की ज्ञान की शक्ति का उदाहरण चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य के इतिहास से ले सकते है। जो की पुराण नहीं इतिहास है।
ये हर कोई जानता है की सनातन धर्म के सत्य को अर्थात वेद पुराणों को, श्रुति और स्मृति के द्वारा सहेज कर रखा है. जिसका प्रमुख भार या कार्य ब्राह्मणों के द्वारा किया गया। कोई ब्राह्मण कितना भी गरीब हो, लेकिन कभी भी व्यापार, या खेती नहीं कर सकता था। ब्राहम्णो का कार्य पुराने ज्ञान को नयी पीढ़ी में ट्रांसफर करना था। जो की गुरुकुल परम्परा द्वारा किया जाता था।
जैसे - श्री कृष्ण और सुदामा को एक ही गुरुकुल में समान रूप से अधिकार व् शिक्षा दी जाती है। उन्होंने उसी ज्ञान का इस्तेमाल अलग अलग तरीके से किया गया. जैसे श्री कृष्ण वही ज्ञान मानव को गीता के रूप में सबको देते है। मित्र और राजा के रूप में समाज का पालन करते है। तो सुदामा गरीब होने के बाद भी व्यापार, या खेती नहीं कर सकता था, यहाँ तक की वो पांच घर से ज्यादा घरो में भिक्षा भी नहीं मांगते.
अर्थात उस समय ब्राह्मणों का प्रमुख कार्य उसी काल के समाज को उस ब्रह्म ज्ञान से परिचित करवाना था जो श्रुति और स्मृति द्वारा इनकी पीढ़ियों में ट्रांसफर होता रहा, जो की ब्रह्म का कार्य था और है। इसलिए इन्हे ब्राह्मण कहा जाता है। उसी ब्रह्म ज्ञान अर्थात शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मण सनतान धर्म में सबसे सम्माननीय माना जाता था क्युकी ब्रह्म ज्ञान को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ट्रांसफर करना बहुत बड़ा, कठिन और परमात्मा का कार्य तो था ही साथ ही साथ खुद के परिवार पालन के लिए उसी समाज पर निर्भर होना भी था। क्युकी ब्राह्मणो को व्यापार, या खेती करने न समय था, न सम्मान के लिए करने दिया जाता था, शास्त्रों के अनुसार वो पांच घर से ज्यादा घरो में भिक्षा भी नहीं मांग सकते थे।
क्युकी सामवेद के अनुसार ब्राह्मण की मुख्य धर्म या जिम्मेदारी / धर्म और कर्तव्य किसी मनुष्य या अपने यजमान का कल्याण और ब्रह्म शिक्षा देना था तो वही उसी समाज का कर्तव्य और धर्म उस ब्राह्मण परिवार का पालन पोषण दक्षिणा रूप में बनाये रखना था, जिसे आज भी बहुत से ब्राह्मण अपने वंश या पुरखो का कार्य समझ कर अपने कर्तव्य व् धर्म का पालन कर रहे है।
चूँकि किसी धर्म के ज्ञान को ख़त्म करना हो तो एक विद्यालय ख़त्म करने की बजाय गुरु को ही मार देना ज्यादा सरल है। इसलिए सनातन धर्म में ब्राह्मण को हमेशा खतरा रहा है और ये शिकार रहा है बाह्य देश की शक्तियों का। इसलिए क्षत्रिय का प्रमुख कर्तव्य या जिम्मेदारी इनकी रक्षा करना होता था। एक ब्राह्मण की हत्या करने का मतलब सौ गाय हत्या के बराबर पाप माना गया क्युकी एक ब्राह्मण के साथ साथ उस ब्रह्म ज्ञान की हत्या भी थी।
इसलिए में स्वयं क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण की रक्षा करने की इच्छा रखता हु और तत्पर रहुगा आज की स्थिति को ध्यान में रखते हुए। क्युकी अगर ब्राह्मण सत्य नहीं है तो फिर सत्य कुछ भी नहीं है। एक सच्चे ब्राह्मण की ज्ञान की शक्ति का उदाहरण चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य के इतिहास से ले सकते है। जो की पुराण नहीं इतिहास है। और आसानी से उपलब्ध है।
लेकिन कहते है कलयुग में हर मानव अपना अपना कर्तव्य भूल गया, और सिर्फ और सिर्फ पेट भरने की कोशिश में जन्म बर्बाद कर रहा है। एक मानव को तभी भगवान् की प्राप्ति हो सकती है। जब वो अपना कर्म, धर्म को ध्यान में रखकर करे।
इसके लिए ज्ञान की आवश्यकता है। अब इसे आप खुद पढ़े या कोई ब्राह्मण ढूढे। :-)
यह लेख श्रीमद भागवत महापुराण के पढ़ने के दौरान मुझे मिले। फिर भी किसी फिर किसी भी धर्म, जाति या व्यक्ति को ठेस पहुंची हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ। अगर कही गलत हु तो कमेंट के द्वारा मुझे सही करे।
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