मेरे जीवन में 250 रुपये का सबसे अच्छा इस्तेमाल क्या था और है? gitapress Kalyan Book Review
हर किसी के जीवन में धन का आना और जाना लगा रहता है। ये बिलकुल उसी तरह से होता है जैसे जीवन रूपी नदी में पानी का बहना। कभी ये पानी ज्यादा होता है तो कभी कम। कभी धन की बाढ़ आती है तो कभी सूखा पढ़ जाता है।
लेकिन एक बात बिलकुल सत्य है। वह यह की वही पात्र शुद्ध और पवित्र रहता है जिसमे जल बदलता रहता है या प्रवाहित होता रहता है। अर्थात मनुष्य के जीवन में धन का आना जाना अच्छी बात है। धन कमाओ उसका कुछ हिस्सा बचा कर रखो, कुछ परिवार पर खर्च करो तो कुछ दान करो। इससे मनुष्य का मतिष्क साफ़ रहता है। किसी भी तरह का क्लेश उसके जीवन में नहीं रहता है।
तो वही जिस पात्र में जल को संग्रहित करके रख लिया जाता है उस पात्र का जल भी ख़राब हो जाता है और स्वयं पात्र भी ख़राब हो जाता है। जैसे की कोई कंजूश व्यक्ति अपने बच्चो को धन से तो दुखी रखता ही है साथ में अपने स्वयं के जीवन को भी दुखी रखता है।
आज में बताना चाहता हु की मेरे जीवन में 250 रुपये का सबसे अच्छा इस्तेमाल क्या रहा?, ये अनुभव में इसलिए और बताना चाहता हु की क्युकी जब भी मुझे याद आता है की मेने ये परम सुन्दर कार्य किया तो अभूतपूर्व सुख की अनुभूति होती है।
एक बार की बात है, जब में इंटरनेट पर कुछ किताबे देख रहा था, अमेज़न पर देखा, फ्लिपकार्ट भी देखा। तो वहाँ गीताप्रेस की किताबे भी दिखी। फिर मैं गीताप्रेस की वेबसाइट www.gitapress.org पर आया। यहाँ बहुत सी शास्त्रों की ओरिजिनल किताबे है। सभी किताबो को ध्यान से देखा और उनके बारे में जो जानकारी दी गयी थी उसे पढ़ा।
वहाँ पर गीताप्रेस से हर महीने प्रकाशित होने वाली मैगजीन "कल्याण" के बारे में भी पढ़ा। कल्याण बुक का पीडीएफ रूप फ्री में ही गीताप्रेस की वेबसइट www.kalyan-gitapress.org पर पढ़ने के लिए उपलब्ध है। मेने उसको पढ़ा तो उस दिव्य ज्ञान को पढ़कर विस्मित हो गया , फिर मेने पता नहीं क्या सोच कर Kalyan Book Price Rs.250 का सब्सक्रिप्शन ले लिया।
सच बतायु। में सब्सक्रिप्शन लेकर भूल भी गया था। तभी 15 दिन बाद पोस्टमैन आया और उसने एक पार्सल मेरे नाम से डिलीवर किया। उसमे मेने देखा की "कल्याण" नाम से मुख्य किताब और "कल्याण" नाम से ही 4-5 बीते महीने की मैगज़ीन थी। उसमे दिए गए दिव्य ज्ञान के बारे में आज बात नहीं करूँगा।
लेकिन अब में हर महीने उसका इन्तजार करता हु। उसको पढ़ते समय और उसका इन्तजार करते समय जो सुख की अनुभूति या प्राप्ति होती है उसका मूल्य 250 रुपये ही है लेकिन ऐसा लगता है जैसे सारे संसार का सुख मेने खरीद लिया हुआ हो।
इसलिए इस बात को बताते हुए प्रसन्नता हो रही है, की मेरे जीवन में इस 250 रुपये साल का सबसे अच्छा उपयोग है और रहेगा। क्युकी ये दिव्य ज्ञान मुझे तक ही सीमित नहीं है, घर में सभी लोग उसको पढ़ते है और उस पर चर्चा करते है, शास्त्रार्थ करते है। यही उस परमात्मा की कृपा है, सुख और स्वर्ग है।
ll ॐ परमात्मने नमः ll
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