Bageshwar Baba News - हीन भावना से ग्रसित ब्लॉगर की तरह सनातन धर्म के बारे में कुछ भी न्यूज़ बनाकर चला देना,लिख देना, यह किसी बुद्धिजीवी के अंहकार की प
जिन्हे सनातन धर्म में सिंदूर और मंगलसूत्र का महत्त्व नहीं पता पहले उन्हें इसे जानना चाहिए, कि यह जबरजस्ती परिधान पहनाने का नियम नहीं है बल्कि प्रेम का प्रतीक है। चलिए समझते है मेरे अपने स्वयं के भाव से उत्पन्न विचारों से, और जितना जानता और समझता हूँ।
पौराणिक कथा के अनुसार, लंका से लौटने के बाद एक दिन जब माता सीता अपनी मांग में सिंदूर भर रही थीं उस समय हनुमान जी ने उनसे इसका कारण पूछा। हनुमान जी के इस प्रश्न का जवाब देते हुए माता सीता ने कहा कि प्रभु श्रीराम की लंबी उम्र की कामना के लिए वो मांग में सिंदूर लगाती हैं।
माता सीता की यह बात सुनकर हनुमान जी ने सोचा कि अगर थोड़ा सा सिंदूर लगाने से प्रभु को इतना लाभ है तो पूरे शरीर पर सिंदूर लगाने से प्रभु श्रीराम अमर हो जाएंगे। उस दिन हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर में सिंदूर लगाकर माता के समक्ष उपस्थित हुए। माता जानकी श्री हनुमान जी का अपने प्रभु के प्रति प्रेम देखकर भाव विभोर हो गयी और प्रसन्न होकर वरदान दिया कि जो श्री राम के प्रिय भक्त हनुमान जी सिंदूर चढ़ाएगा और लगाएगा उसकी भौतिक और आध्यात्मिक मनोकामना सिद्द होगी।
उस दिन से श्री राम और माता जानकी के वंशज अपनी पूर्वज माता जानकी के इस कदम का अनुसरण करते है। इसलिए सनातन धर्म की माताएं और बहने, ये सिंदूर अपने मस्तक और मांग में धारण करती है। ऐसा करने के लिए किसी भी स्त्री को बाधित नहीं किया जाता, बल्कि वे अपने जीवन साथी के प्रति प्रेम के भाव को प्रदर्शित करती है।
अब आते है श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने क्या कहा, मीडिया जिन शब्दों को शर्मनाक कह रहा है उस पर अपने विचार रखता हूँ।
सिंदूर और मंगलसूत्र न दिखे तो प्लाट खाली है -
सिंदूर और मंगलसूत्र, सनातन धर्म की स्त्रियों की कही न कही रक्षा भी करता है। क्युकी इस समाज में हर प्रकार के मनुष्य निवास करते है। सिंदूर और मंगलसूत्र न दिखे तो प्लाट खाली है, अर्थात अभी शादी नहीं हुयी, का अर्थ विशेष प्रकार के पुरुष लगा ही लेते है, जो स्त्रियों को सिर्फ नकारात्मक भाव से देखते है।
उन विशेष प्रकार के पुरुषों से ये सिंदूर और मंगलसूत्र हमारी माताओं और बहनों की रक्षा करते है क्युकी इससे सामने वाले को पता चल जाता है कि पति-पत्नी में अथाह प्रेम है, अर्थात इस प्रेम का प्रतीक भी है.
इसे धारण करने के लिए कोई जोर जबरजस्ती नहीं, जो माताएं नहीं लगाना चाहती वे नहीं लगाती है। उनका समाज में कोई विरोध नहीं है। आत्मारक्षा और अपने पति से प्रेम, ये स्त्री-पुरुष के अपने जीवन के अधिकार है, अन्य धर्मो में भी लोग अलग-अलग परिधान, और शस्त्रों का उपयोग करते है।
सिंदूर-मंगलसूत्र हो तो समझ जाते हैं कि रजिस्ट्री हो गई -
वही कुछ विशेष लोग जो विवाह, प्यार (प्रेम नहीं) के लिए समाज में लड़कियों को ठगने के लिए स्वान की भांति सुंघते फिरते है, वे लोग भी उस स्त्री से सावधान रहते है जो सिंदूर-मंगलसूत्र और मस्तक पर तिलक धारण करती है, क्युकी वह किसी घर, परिवार, समाज या धर्म की शक्ति है। अर्थात वह किसी राम की सीता की तरह होती है।
अगर मैं अपने स्वयं के भावों को और गहरा प्रकट करूँ तो मैं जब भी ISCKON परम्परा का अनुसरण करने वाली या अन्य कोई परम्परा से माता बहन मस्तक पर तिलक के साथ दिखती है तो मन ही मन ऐसी आत्मा को प्रणाम कर लेता हूँ, फिर सम्मान की तो बात ही क्या।
मंगलसूत्र -
मंगलसूत्र के बारे में कोई पौराणिक कथा तो याद नहीं, पर इतना अवश्य जानता हूँ की स्त्री के लिए मंगलसूत्र और पुरुष के लिए रक्षासूत्र दोनों का ही महत्त्व है। यहाँ सूत्र का अर्थ धागा या डोर. मंगल अर्थात मांगलिक धर्मो के द्वारा सोलह संस्कारो में से एक वैवाहिक संस्कार से संपन्न वैवाहिक जीवन में हमेशा मंगल रहे। इसलिए हमारी माताएं मंगलसूत्र धारण करती होगी।
तो फिर मीडिया इन शब्दों को शर्मनाक क्यों कह रहा है? -
मीडिया में अगर सनातन धर्म के लोग होंगे वे शायद मेरे ऊपर दिए गयी विचारो से सहमत होंगे। लेकिन अन्य धर्मो के लोग भी मीडिया में काम करते है, हो सकता है उन्हें दूसरे धर्मो के मूल्यों का ज्ञान न हो, इसलिए वे इन शब्दों को शर्मनाक कह रहे है। उदाहरण के लिए अगर मैं ये एक मुहावरा बोल दूँ की "नाच न जाने आँगन टेड़ा" तो मीडिया ये कहेगा कि मैंने आँगन टेड़ा कर दिया ? सही कहा न ?
भावना से कर्म निर्धारित किये जाते है -
वह इसलिए क्युकी मीडिया में बहुत ज्यादा पढ़े लिखे लोग काम करते है, वे अपने अनुभव से इंसान को भाप लेते है। मुझे नहीं लगता कि मीडिया के लोगो ने गुरु जी के भाव को समझने की कोशिश नहीं की होगी, जिन्होंने कभी किसी स्त्री को माता या बहन से सम्बोधिंत नहीं किया हो।
कुछ अन्य भाव -
ये भी हो सकता है कि हमारे बुंदेलखंड की भाषा किसी अन्य राज्य के लिए कठोर लगती हो, बुद्धिमान मनुष्य सामने वाले के भाव से उसको आंकता है, शिष्टाचार से नहीं, शिष्टाचार कभी कभी बहरूपिया भी धोखा देने के लिए करते है, इसलिए शिशुपाल की तरह ह्रदय में किसी के प्रति इतना भी द्वेष मत रखो की आँखे होते हुए भी अन्धो की तरह वर्ताव करो। ।
कितने कमाल की बात है कि प्लाट खाली, रजिस्ट्री जैसे शब्दों का इस्तेमाल सिर्फ वैवाहिक सम्बन्ध की पहचान के तरीके के रूप में किये गए उदाहरण मात्र है। मतलब सनातन गुरुओ के उदाहरणार्थ दिए गए शब्दों को भी पकड़ कर चिढ़े हुए लोग उनकाअपमान करने का मौका नहीं छोड़ना चाहते। ईश्वर इन्हे शांति प्रदान करे।
इसलिए एक हीन भावना से ग्रसित ब्लॉगर की तरह सनातन धर्म के बारे में कुछ भी न्यूज़ बनाकर चला देना,लिख देना, यह किसी बुद्धिजीवी के अंहकार की पराकाष्ठा है क्युकी वैवाहिक संस्कार को किसी उदाहरण से समझाने से वह संस्कार नष्ट नहीं हो जाता है, और न ही हमारी माताओं का इससे अपमान होता है। आज के परिवेश में ज्यादातर चिढ़े हुए लोग सनातनी लड़कियों की बात ही क्या, सनातनी वैवाहिक स्त्रियों का धर्म नष्ट करने के लिए हर गली, घर, समाज, ऑफिस में बहरूपियाँ की तरह विचरण कर रहे है।
मीडिया को ध्यान देना चाहिए -
चिढ़े हुए कुछ मीडिया संस्थानों को अगर समाज की इतनी ही चिंता है तो इनको उन लोगो का भी बॉयकॉट करना चाहिए, जो -
- जो अपने धर्म को छुपा कर किसी सनातनी लड़की या स्त्री का धर्म नष्ट करते है।
- जो सनातन धर्म की लड़की या स्त्री से विवाह करके छोड़ (तलाक़) देते है। फिर भी हीरो बने हुए है।
- जो समाज में स्त्री बदलने जैसी राक्षसी प्रथाओं को भर रहे है।
बाकि में प्रार्थना करूँगा श्री हनुमान जी से कि वे जल्दी से जल्दी आपको बल और बुद्धि से ज्ञान दे।
Disclaimer - यह ब्लॉग पोस्ट एक व्यक्तिगत भावनात्मक पोस्ट है, इसका किसी भी संस्थान, धर्म, व्यक्ति, जाति इत्यादि से कोई सम्बन्ध नहीं है।
Image Credit - Pixabay (thanks to rkrandhir)
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