आरक्षण बचाओ का नारा - वोट उसे दे जो ये वादा करे कि उन दलित परिवारों को ही सरकारी नौकरी मिलेगी या आरक्षण मिलेगा, जिनके पास सरकारी नौकरी नहीं है
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने SC-ST श्रेणियों में कोटे के अंदर कोटा बनाने की वैधता पर फैसला सुनाया, तो मैंने इसके बारे में थोड़ा Google किया। तो जो जानकारी मुझे प्राप्त हुई उससे बड़ा दुःख हुआ और हैरानी भी हुई कि कैसे आरक्षण बचाओ का नारा देने वाले ही गरीब दलित की सरकारी नौकरी खा गए।
यहाँ में SC-ST श्रेणियों में कोटे के अंदर के कम्पटीशन की बात कर रहा हूँ -
मान लीजिये किसी दलित परिवार का एक व्यक्ति भी अफसर बन जाने के बाद, अपने उसी परिवार के अन्य बच्चो को आरक्षण के माध्यम से सरकारी नौकरी के लिए तैयार करता है
तो प्रश्न है कि -
अफसर या सरकारी नौकरी वाले परिवार का बेटा या बेटी इस कोटे के अंदर के कम्पटीशन में टॉप पर आएगा, अर्थात सरकारी नौकरी मिलेगी?
या
इसी कोटे के अंदर गरीब दलित परिवार का बेटा या बेटी, जिसे रोटी कमाने के चक्कर में पढ़ने का भी समय नहीं मिल पाता उसे सरकारी नौकरी मिलेगी?
सीधी सी बात है? -
सरकारी नौकरी वाले परिवार का बेटा या बेटी इस कोटे के अंदर के कम्पटीशन में जगह पहले बनाएगा, क्युकी उसके पास पढ़ने के साधन है। क्युकी बाप के पास पहले से सरकारी नौकरी है।
जबकि
गरीब दलित परिवार के बेटे/बेटी के पास Unlimited Attempt होने के बाबजूद, वे सरकारी नौकरी प्राप्त करने में असफल रह जाते है, क्युकी उनका अधिकार क्रीमी लेयर वाले लोग ले जाते है। इन बेटा/बेटियों के पास तो SC-ST कोटे को सावित करने में जो डॉक्यूमेंट लगते है, उन्हें बनवाने तक के पैसे नहीं होते। बस ज़िंदगी रोज कमाओ तो रोज़ खाओ पर गुजरती है।
अरे! यहाँ क्रीमी लेयर शब्द का क्या अर्थ है?
क्रीमी लेयर में वह परिवार आता है, जो पहले से ही आरक्षण के माध्यम से प्राप्त सरकारी नौकरी से उनकी सालाना कमाई 7-8 लाख से ऊपर की होती है।
आरक्षण बचाओ का नारा -
कुछ स्पेशल टाइप के दलित नेता और उनसे फायदे लेने वाले कुछ स्पेशल टाइप के दलित पत्रकार यह बात गरीब दलितों को क्यों नहीं बताते? अब आप स्वयं समझिये कि आरक्षण बचाओ का नारा कौन दे रहा है? और किसे, किस बात का डर है ?
तो अगर आपके परिवार में सरकारी नौकरी नहीं है, और रोज़ कमाओ तो रोज़ खाओ वाली स्थिति है तो स्वयं विचार कीजिये कि कैसे आरक्षण बचाओ का नारा देने वाले ही गरीब दलित अर्थात आपकी सरकारी नौकरी खा गए?
इसलिए अपना वोट समाज या जाति के नेता को न दे, वोट उसे दे जो ये वादा करे कि उन दलित परिवारों को ही सरकारी नौकरी मिलेगी या आरक्षण मिलेगा, जिनके पास सरकारी नौकरी नहीं है।
अगर ऐसा होता है तो इस देश में कोई भी गरीब नहीं बचेगा। क्युकी GOVERNMENT JOBS में UNLIMTED ATTEMPTS होने से, और कोटे के अंदर से कम्पटीशन ख़त्म होने से सभी दलित पैसे वाले नहीं, तो कम से कम मध्यम वर्ग में अवश्य आने लगेंगे।
अगर ऐसा हुआ तो अवश्य ही आदरणीय बाबा भीमराव अम्बेडकर जी का सपना सत्य हो जायेगा। आपको जानकार आश्चर्य होगा कि चाहे दलित नेता पैनल बनाये, चाहे सरकार, या चाहे कोर्ट, सभी जातियों के अंदर जातियां ढूढ़ कर आ जाते है।
लेकिन कोई गरीब दलित का बैंक अकाउंट या रोज़ाना की कमाई नहीं देखते।
इसलिए सोचिये वास्तव में संविधान किसके अधिकारों रक्षा कर रहा है? गरीब दलित के या अफसर दलित के अधिकारों की?
आप सभी को जय श्री राम, हर हर महादेव।
अगर आपको लगता है कि मुझे गलत जानकारी है तो कमेंट अवश्य करे।
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