ये वही सोच है जो सनातन धर्म के लोगो को डेंगू मलेरिया के मच्छर समझती है? रामचरित मानस के पेज को फाड़कर अपने पैरो से कुचलती है? गाय के मांस खाने को लेक
What I Think - आपने अभी तक जितनी भी फिल्मे देखी होगी उसमे आपको 99% सनातन धर्म को ही लक्ष्यित किया गया है, क्युकी भारत की आज़ादी के बाद ज्यादातर परिवारो ने गरीबी तो सह ली लेकिन अपनी मान और मर्यादा के साथ समझौता नहीं किया। राज परिवारों की स्त्रियों ने तो स्वयं को भस्म तक कर डाला। लेकिन उन्होंने अपने आप को छूने नहीं दिया, और जिन्होंने छूने दिया वे अपनी प्रजा के लिए स्वयं बलिदान हो गयी। ताकि संधि हो जाये और प्रजा सुरक्षित रहे।
तो वही दूसरी तरफ मुग़लो के जमाने से चले आ रहे कोठे, बहरूपियों के खेल और मलिच्छों से उत्पन्न क्रिया कलाप तत्व जिन्हे जैसे ही एक मंच मिला तो सबसे पहले उन्होंने सनातन धर्म के खिलाफ ही उसे छिन्न भिन्न करने की मुहीम चलाई।
शायद उसी के अंतर्गत कर्मकांड, पुजारी, ब्राह्मण, क्षत्रिय और दलित में आपस द्वेष रखने वाली पठकथाये लिखी गयी और उनके दूर से दर्शन भी करवाए गए।
इनके इंटरव्यू को ध्यान से देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि वे लोग आज खुले रूप से शायद न बोल पाए, क्युकी वे जीवित उन्ही के पैसे से है जिन्हे वे समाप्त करना चाहते है। लेकिन फिर भी दबी जुवान में शर्म, घुघट और नैतिकता को समाज की बेड़ी बताते है, और दूसरी तरफ बुर्का के लिए प्रोत्साहित करते है। ये गलत नहीं है तो फिर दूसरा गलत कैसे है?
आपको बता दूँ कि जब दो सात्विक आत्माओं का मिलन होता है तो प्रेम कहलाता है। तो वही जब दो तामसिक आत्माओं का मिलन होता है तो प्यार कहलाता है। आप जितने भी टीवी प्रोग्राम या फिल्मे देखेंगे तो पाएंगे इन्होने व्यापक रूप से व्यक्तिगत प्रेम से लेकर सामाजिक प्रेम को समाप्त करने की कोशिश की है और उसके बदले में प्यार को थोपा है, फिर उसी प्यार को इन्होने किसी भी शक्ति से ऊपर रखा है।
ये वही सोच है
जो सनातन धर्म के लोगो को डेंगू मलेरिया के मच्छर समझती है?
रामचरित मानस के पेज को फाड़कर अपने पैरो से कुचलती है?
गाय के मांस खाने को लेकर उसे अपनी आज़ादी बताते है?
लेकिन सनातन धर्म के लोग इतने भ्रमित है कि वे इसका विरोध भी करना भी अपने समय की बर्बादी समझते है। क्युकी पैसा ही सब कुछ है ये हमारे दिमाग में भरा गया है। कि भगवान् रोटी देने नहीं आते, ये डायलॉग हमें याद करवाया गया है, ताकि हम नास्तिक अर्थात काफिर बन सके, फिर किसी भी दंगे आदि का बहाना लेकर हमें समाप्त किया जा सके जैसा हमेशा से होता आ रहा है।
डिस्क्लेमर - यह केवल एक ब्लॉग पोस्ट है, जो कि मेरे व्यक्तिगत विचारमात्र है। इसका किसी व्यक्ति, धर्म, इंडस्ट्री या जाति से कोई संबंध नहीं है।
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