दलितों,गरीबो और वंचितों के पास बचा क्या है ? एक झूठा आश्वासन कि अब राजा का बेटा राजा नही बनेगा, राजा वो बनेगा जो हकदार होगा।
अब राजा का बेटा राजा नही बनेगा, राजा वो बनेगा जो हकदार होगा? Aaj Raja Ka Beta Raja Nahi Banega
यह वाक्य सुनने में जितना क्रांतिकारी लगता है, असल ज़िंदगी में उतना ही भ्रामक और खोखला है। फिल्मों, टीवी शोज़ और गानों ने इसे बार-बार दोहराया — लेकिन इसका असर क्या हुआ? जातिवाद का ज़हर, जो पहले सिर्फ़ कुछ लोगो की सोच में था, अब नीति और व्यवस्था में घुल चुका है।
अब राजा का बेटा राजा नही बनेगा, ऐसी बातें और फिल्मे या डायलॉग बहुत सुनी होगी लेकिन इन सबका लक्ष्य जातिवाद का ज़हर घोलने का अभी तक रहा है। फिल्मे, टीवी शोज, गाने भी इसी धीमे ज़हर को समाज में घोलते रहे है। जिसके परिणाम स्वरूप राजनीती, सरकारी नौकरी और उद्योग धंधो से गरीब और वंचित निष्काषित से हो गए है।
इस बारे मे, मेरा चश्मा कितना उल्टा है, आप स्वयं देखिये।
राजनीति में राजा का बेटा राजा बनता है -
राजनीति में "हकदार" का मतलब अक्सर वंश होता है, योग्यता नहीं। अर्थात ज्यादातर राजनितिक पार्टियों की राजनीति में "हकदार" या अधिकार का मतलब अक्सर वंश होता है, योग्यता नहीं।
बड़े नेताओं के बेटे-बेटियाँ सीधे टिकट पाते हैं, जबकि ज़मीनी कार्यकर्ता सिर्फ़ नारे लगाते रह जाते हैं।
सत्ता में आने के बाद, सरकारी टेंडर, ठेके, और अनुदान उन्हीं के करीबी लोगों को मिलते हैं।
भ्रष्टाचार एक चक्र बन जाता है —
अर्थात पार्टी के कार्यकर्ताओ को केवल सरकारी टेंडर मिलते है, जिससे वे भ्रस्टाचार करके खुद का एवं राजा के बेटा का खजाना भरते है, और बाबा साहेब के नाम पर संविधान की बात करने वाले ही देश और संविधान की आत्मा को लूटते हैं,
सरकारी नौकरी में राजा का बेटा राजा बनता है -
आरक्षण से मिली सरकारी नौकरी से पिता अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा, अनलिमिटेड अटेम्प्ट, और सुरक्षित भविष्य देता है।
फिर भी उसे "वंचित" कहा जाता है — जबकि वास्तविक वंचित आज भी असली संघर्ष में उलझा हुआ है।
जिनके पास पहले से संसाधन हैं, वे इसका लाभ उठाकर अपने बच्चों को भी उसी कुर्सी तक पहुंचाते हैं।
और इस तरह, राजा का बेटा फिर से राजा बनता है। लेकिन इस बार आरक्षण के दुरपयोग से।
उद्योग-धंधे: जहाँ राजा का बेटा राजा होना चाहिए था? -
पारंपरिक पेशों में अनुभव, हुनर और सम्मान था — लेकिन उन्हें जातिवाद का नाम देकर हतोत्साहित किया गया। 800 साल विदेशी शासन के दौरान सम्मान को जातिवाद का ज़हर बना दिया गया।
(जहाँ राजा का बेटा राजा होना चाहिए था, क्युकी वहां अनुभव बचपन से सीखा, देखा और सुना जाता था।, वहां उसे जातिवाद का नाम देकर सेंधमारी कर दी गयी )
अगर कोई गरीब और वंचित अपना कुछ पारंपरिक उद्योग धंधे लगाने की कोशिश भी करे तो उन्हें उनके काम को जाति से जोड़कर भड़काया जाता है, ताकि उसे वे छोड़ दे।
और यह अब समाज में दिखने भी लगा है। आज समाज में व्याप्त जन्मजात आरक्षण को समाप्त कर दिया गया है, जैसे
नाई - सलून का धंधा (Salon business)
लोहार - लोहे से समान बनाने के कारीगर। (Iron craftsman)
सुनार - सोने से समान बनाने के कारीगर। (Iron craftsman)
धोबी - ड्राई क्लीन या कपडे धोने का धंधा। (Dry cleaning or laundry business)
चमार - चमड़े से समान (बेग/बेल्ट) बनाने के कारीगर। (Dry cleaning or laundry business)
कहार - पानी बेंचने, खरीदने का काम। (Water seller)
इत्यादि
आज वही पेशे — जो गुलामी शासन के दौरान "नीच" कहे जाते थे — वे आज सम्मान और मुनाफे का जरिया बन चुके हैं, लेकिन करने वाले लोग बदल गए हैं।
न्यायपालिका में भी राजा का बेटा राजा -
भारत की न्यायपालिका में कोलेजियम सिस्टम के तहत माननीय सुप्रीम कोर्ट और माननीय ई कोर्ट के माननीय जजों की नियुक्ति होती है। यह प्रक्रिया गैर-पारदर्शी होती है — जिसमें आम जनता या संसद की कोई भूमिका नहीं होती।
इस बारे में मुझे स्वयं ज्यादा जानकारी नहीं, और जितना न्यूज़ और सोशल मीडिया से सुना उतना बता दिया।
जब तक सही नियत वाले ऐसा कर रहे है तब तक तो ठीक है।
लेकिन अगर इस सिस्टम में कई वायरस आ गए। तो इसे फॉर्मेट करना मुश्किल लगता है। और माननीय के बारे में ज्यादा कुछ कहना उचित नहीं, सिर्फ चिंता व्यक्त करना मेरा देश के प्रति अधिकार है।
इसलिए आज के परिपेक्ष्य में -
शासन व्यवस्था -
पुराने समय में शासन और न्याय या उस से सम्बंधित कार्य करने वाले - (कर्म के अनुसार क्षत्रिय, ब्राह्मण )
आज के परिपेक्ष्य में गरीबो और वंचितों को राजनीति से राजा की गद्दी गायब
सरकारी नौकरी -
पुराने समय में नौकरी या खोज और उस से सम्बंधित कार्य करने वाले - (कर्म के अनुसार ब्राह्मण और शूद्र)
आज के परिपेक्ष्य में गरीबो और वंचितों को सरकारी नौकरी से नौकरी गायब
व्यापार -
पुराने समय में व्यापार और उस से सम्बंधित कार्य करने वाले - ( कर्म के अनुसार वैश्य और शूद्र)
आज के परिपेक्ष्य में गरीबो और वंचितों से उनके धंधे गायब
तो आज के युग के दलितों,गरीबो और वंचितों के पास बचा क्या है ? एक झूठा आश्वासन कि अब राजा का बेटा राजा नही बनेगा, राजा वो बनेगा जो हकदार होगा।
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Note - Ai Generated image |
डिस्क्लेमर - यह एक ब्लॉग पोस्ट है मात्र है, इसका किसी भी जाति, धर्म और संस्था से कोई लेना देना नहीं है। ये कोई न्यूज़ नहीं बल्कि मानसिक विचार मात्र है।
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