मैं आपको सिजेरियन डिलीवरी से सम्बंधित अपने जीवन का एक अनुभव बांटना चाहूंगा, जिसे आप किसी भी न्यूज़ वेबसाइट या डॉक्टर से प्राप्त नहीं कर सकते। मेरे जीवन
आज मैं आपको सिजेरियन डिलीवरी से सम्बंधित अपने जीवन का एक अनुभव बांटना चाहूंगा, जिसे आप किसी भी न्यूज़ वेबसाइट या डॉक्टर से प्राप्त नहीं कर सकते। मेरे जीवन में भी यह क्षण आया जब मुझे भय और अभय दोनों में से एक को चुनना पड़ा।
ज्यादा समय न बर्बाद करके बिल्कुल संक्षिप्त रूप से वर्णन करूँगा।
ये बात 5 फ़रवरी 2021 की है, जब माँ दूसरा बच्चा माँ के गर्भ में था, आज भी दिनांक मुझे स्मरण है क्युकी दो दिनों के बाद मेरी दूसरी बच्ची का जन्म हुआ था।
बात है 5 फ़रवरी से एक दो दिन पहले कि जब मैं बच्चे की मां को लेकर दिल्ली के दादादेव सरकारी हॉस्पिटल में लेकर गया था, जहाँ डॉक्टर ने माँ के अल्ट्रासॉउन्ड के बारे में लिखा था। जिसे मैंने प्राइवेट अल्ट्रासॉउन्ड सेण्टर से करवाया क्युकी सरकारी अल्ट्रासॉउन्ड वार्ड में भीड़ और काफी देर तक लाइन में खड़े रहने का संकट था, मैं माता को कष्ट नहीं देना चाहता था और भगवान् मुझे इस लायक अर्थ दिया था कि इसे में आसानी से उठा सकता था।
एक दिन बाद अल्ट्रासॉउन्ड की रिपोर्ट आयी तो उसे देखकर मुझे तो कुछ समझ में आया नहीं, और प्राइवेट अल्ट्रासॉउन्ड वालों ने भी कुछ नहीं बताया, तो मेने सोचा क्यों नहीं इसे प्राइवेट डॉक्टर को दिखाकर इस रिपोर्ट के बारे में कुछ पता करू की सब कुछ ठीक ठाक है या नहीं।
उस दिन शुक्रवार था, अगले दिन शनिवार फिर रविवार अर्थात दादादेव में दो दिन तक छुट्टी सी थी, शायद कुछ कारण था, वो याद नहीं। लेकिन में उस रिपोर्ट को लेकर जनकपुरी के प्राइवेट नर्सिंग होम में गया, नाम नहीं बतायूंगा क्युकी ये उनका उद्योग धंधा है, और मेरे साथ कुछ गलत उन्होंने किया नहीं तो उनका लेने का कोई अर्थ नहीं है।
जब मेने उस रिपोर्ट को नर्सिंग होम की डॉक्टर को दिखाया तो उसने मुझे बहुत गुस्से से देखा, और पूछ मां कहा है?
मैंने - वो तो मैडम, घर पर है।
डॉक्टर - तुम आदमी हो, या हैवान, तुम्हारे अंदर थोड़ी से दया नहीं अपनी पत्नी या बच्चे के मां के प्रति ??
मैं - क्या हुआ मैडम ?
डॉक्टर - तुमने रिपोर्ट में देखा नहीं, बच्चे का वजन 3 किलो से ज्यादा है। मां को बहुत खतरा है वो मर जाएगी, कितना सहेगी।
मैं - कहा लिखा है? मुझे तो कुछ समझ में आया नहीं, तो उसने दिखाया तो रिपोर्ट में शायद 3.10 के आस पास था
डॉक्टर - कहाँ दिखा रहे हो?
मैं - मैं दादादेव हॉस्पिटल में दिखवा रहा हूँ क्युकी प्राइवेट हॉस्पिटल वालों पर भरोसा नहीं करता, उन्होंने अभी सिर्फ मुझे लूटा है, इलाज नहीं किया, ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है।
डॉक्टर - में आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ, मां पर रहम कीजिये, ये फिलॉसिपी बाद में ज़िंदगी भर रखना, लेकिन अभी तुम्हारी वजह से दोनों को कुछ हुआ तो ये फिलॉसिपी तुमको ज़िन्दगी बर्दाश्त नहीं होंगे, कुछ समझ में आ रहा है या नहीं ??
मैं - ठीक है मैडम में लेकर आता हूँ, खर्चा बता दीजिये।
डॉक्टर - देखिये ये डिलीवरी नार्मल होना बहुत मुश्किल है कोई नहीं कर सकता। और सिजेरियन डिलीवरी का खर्चा 50-80 हज़ार के आस पास आएगा। बच्चे और मां की स्थिति पर ये खर्चा कम या ज्यादा हो सकता है।
मैंने ठीक है मैंडम, कहकर सर हिलाया और घर के लिए तेज़ कदमों से निकल पड़ा। चलते चलते मैंने घर पर फ़ोन किया और कहाँ अपना सामान पैक करो, मैं आज ही प्राइवेट नर्सिंग होम में भर्ती करवा रहा हूँ, दो दिन तक में रिस्क नहीं ले सकता क्युकी पेट बहुत बड़ा है।
मेरी धर्मपत्नी को लगा कि कही जुड़वाँ बच्चे या कोई समस्या तो नहीं है? तो उन्होंने जोर देकर पूछा, ठीक है कर लेती हु लेकिन डॉक्टर ने क्या बताया।
फिर जो ऊपर लिखा उसे ज्यों का त्यों एक साँस में बता दिया।
सारी बात सुनने के बाद मेरी पत्नी ने मुझसे बोला कि बच्चा मुझे होने को या तुमको ?
मैंने पूछा - क्यों ?
पत्नी - जब मुझे कोई समस्या लग नहीं रही सब नार्मल है, फिर आप इतना क्यों फ़िक्र कर रहे हो।
मैं - डॉक्टर रिपोर्ट देखकर बहुत नाराज़ हो रही थी। कही कुछ हो गया तो?
पत्नी - भगवान् की जो शरण में होता है तो भगवान् सबसे पहले उसे क्या देते है ?
मैं - श्रीमद भगवद गीता में तो भगवान् श्री कृष्ण कहते है कि तू बस मेरी शरण में आजा और सबका वहन में स्वयं करूँगा। सबसे पहले वो अपने शरणागत को अभय प्रदान करते है।
पत्नी - तुमको देखकर कौन कहेगा कि तुम भगवान् के अभय दान के नीचे जी रहे हो?
सच बतायु उस स्थिति में यह बात सुनकर मुझे यह बात सत्य कम, व्यंग ज्यादा लग रही थी। मैंने कहा अगर कही कुछ समस्या हुयी तो ??
पत्नी - वह मुझे बड़े शांति और प्रेम से बोली की - मुझे तो अपने भोलेनाथ पर पूरा भरोसा है, सब कुछ नार्मल और बड़े आराम से हो जायेगा। सीजेरियन डिलीवरी से पहले क्या बच्चे नहीं होते थे ?
तो मेने सोचा मेरे माता पिता भी मुझसे बात बात में यही आशीर्वाद देते है कि तुम तो भगवान् के भरोसे हो, तो तुम्हे चिंता की क्या जरुरत है।
मैंने सोचा ठीक है, भय को त्याग कर विवेक की शरण लेता हूँ और समझता हूँ जिसे बच्चा होने को है उसे कोई भय नहीं है तो मुझे भी भगवान् की शरणागति का आनंद लेना चाहिए। वे दीनो के नाथ है इसलिए उन्हें दीनानाथ कहा जाता है। देखते है।
शाम को ड्राइवर मेरी WaganR कार को भी घर पर छोड़ गया, बोला मुझे घर जाना है।
मेने कहा ठीक है। कोई बात नहीं।
शनिवार की शाम को अर्थात अगले दिन मैंने देवी अर्थात अपनी पत्नी और अपनी सास माता को सामान पैक करते हुए देखा।
मैंने पूछा क्या हुआ ? कोई समस्या है?
तो बताया - हाँ आज हल्का हल्का दर्द है।
रात 9 बजे बोला गया कि ड्राइवर को बुलाओ, दर्द बढ़रहा है।
मैंने कहाँ गाडी नीचे खड़ी है ड्राइवर घर गया है, कोई बात नहीं में चलता हूँ।
फिर मैं सीधा दादादेव सरकारी हॉस्पिटल गया।
गाडी से उतरने के बाद हॉस्पिटल स्टाफ ने अपना मोर्चा संभाल लिया और में अपने मित्र के साथ बाहर प्रतीक्षा करने लगा।
फिर सुबह 4 बजे के आस पास सुखद सूचना आयी कि मेरी दूसरी बच्ची बिना किसी परेशानी के हो गयी है और उसका वजन 3 किलो से ऊपर अर्थात बहुत हेल्थी है। जय जय श्री राम, हर हर महादेव।
अब आप इस अनुभव को जानकर अपने विवेक से स्वयं सोचिये और बताइये -
अब आप ही बताइए — यह सिर्फ एक संयोग था या ईश्वर की कृपा या भगवान् की शरणागति का परिणाम? कुछ नहीं तो यही बता दीजिये कि सिजेरियन डिलीवरी इलाज है या धंधा ? कमेंट में अवश्य बताये।
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