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आज आपको अतुल्य भारत के तहत, भारत के छत्तीसगढ़ की कुछ रहश्यमयी,आश्चर्यजनक और देखने लायक जगहों के बारे में बताना चाहुगा, छत्तीसगढ़ भारत के केंद्र में विद्यमान है और ये टूर एंड ट्रेवल्स के लिए बहुच अच्छी जगह है.
गर्म कुण्ड (Hot spring) :
मुझे ये जगह सबसे आश्चर्यजनक लगाती है. यहाँ आप सर्दियों में नहाने से मन नहीं कर सकते. अम्बिकापुर से रामानुजगंज जाने वाली सड़क पर करीब 80 किलोमीटर दूर नेशनल हाइवे के पास गर्म पानी के आठ- दस कुंड हैं। इनमें जमीन के भीतर से गर्म पानी आता है। यहां पर बिना किसी बोर या मोटर के जमीन से लगातार पानी निकल रहा है, वो भी गर्म पानी। पानी इतना गर्म कि मिनटों में अंडे उबल जाएं, पोटली में बंधा चावल पक जाए। यदि लापरवाही बरती तो हाथ भी जल सकता है। इसके अलावा लगातार भाप भी निकलती रहती है। दूर-दूर से लोग इस गर्म पानी के कुंड को देखने के लिए आते हैं। यहां पानी का तापमान 96-100 डिग्री सेंटीग्रेट तक होता है। इस पानी में सल्फर यानी गंधक की मात्रा मिलती है। इससे त्वचा रोग ठीक होते हैं। इस कारण ये आकर्षण का केंद्र है। मकर संक्रांति के मौके पर यहां आकर लोग नहाते हैं। इसके लिए गरम पानी को ठंडा कर लिया जाता है। इस दिन यहां पर एक तरह से मेला जैसा लग जाता है।
मैनपाट (Mainpat's Spongy ground) :
मेंपोट छत्तीसगढ़ का छोटा सा गांव है जो की अंबिकापुर से ४०-४२ किलोमीटर की दूरी पर है. इस जगह को "छत्तीसगढ़ का शिमला" भी कहा जाता है. यहां जलजला नाम की जगह पर चार एकड़ जमीन लंबे समय से लोगों की दिलचस्पी का केंद्र है। इस स्पंजी जमीन पर उछलने से आसपास की जमीन पर कंपन का अनुभव होता है। ठीक उसी तरह, जैसा किसी गद्दे पर उछलने से महसूस हो सकता है। 1997 में जबलपुर में भूकंप आने के बाद यह बना था। एक्सपर्ट्स का मानना है कि जमीन के अंदर का दबाव तथा पोर स्पेस (खाली स्थान) में सॉलिड के बजाय पानी भरा हुआ है। इसलिए भी यह जगह दलदली और स्पंजी लगती है।
टिनटिनी पत्थर (Tintini stone ):
अम्बिकापुर से करीब 10 किलोमीटर दूर दरिमा हवाई पट्टी के पास एक बहुत पुराना पत्थर है। इस पर पत्थर को मारो तो ठीक वैसी ही आवाजें आती हैं, जैसे घंटियों में होती हैं। इस पत्थर से टकराने वाली चीज की हार्डनेस और मैटलिक कंटेंट के आधार पर आवाजें भी अलग-अलग निकलती हैं। हालांकि सारी आवाजें सरल भाषा में टनटनाहट जैसी होती हैं। सुरीली मैटलिक ध्वनि के कारण इसका नाम टिनटिनी पत्थर पड़ा है। इसे लेकर आसपास कई तरह के किस्से- कहानियां हैं। कुछ लोग इसे दूसरे ग्रह या उल्का का पत्थर भी मानते हैं।
अंधेरी कुटुमसर गुफा (Kutumsr dark cave) :
कुटुंबसर गुफा तीरथगढ़ झरने के पास, कांगर घाटी के पीछे विद्यमान है. ये जगह, जगदलपुर से ४०-४२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह गुफा चूना पत्थर से बनी संरचनाओं और अंधी मछलियों के लिए मशहूर है। कुटुमसर गुफा को साइंनटिस्ट ढाई सौ करोड़ साल पुरानी बताते हैं। उनका यह भी कहना है कि ईसा से चार-छह हजार साल पहले यहां आदिमानव रहा करते थे। स्थानीय भाषा में कुटुमसर का मतलब होता है पानी से घिरा किला। माना जाता है कि कभी यह इलाका पानी में डूबा हुआ था। कुटुमसर गुफा चूने के पत्थर से बनी संरचनाओं के कारण प्रसिद्ध है। इन्हें स्टेलेग्माइट व स्टेलेक्टाइट कहा जाता है। इसे पर्यटन के लिए विकसित किया जा रहा है। गुफा के भीतर झींगुर, मकड़ी, चमगादड़, सांप, दीमक जैसे जीव जंतु हैं, लेकिन अंधी मछलियां रहस्यमयी हैं। सूर्य की रोशनी नहीं मिलने के कारण आंखों की पुतलियां विकसित नहीं हो पातीं। माना जाता है कि लंबे समय तक अंधेरे में रहने से ये अंधी हो गईं। इस गुफा को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करवाने के प्रयास हो रहे हैं। अगर आप ये जगह घूमने जा रहे है तो ध्यान रखे वह कोई दुकान या रेस्ट्रोरेन्ट नहीं है, खाने, पीने की चीज़ो को साथ लेकर जाये.
छत्तीसगढ़ का नागलोक (फरसाबहार) ( Snakland in Farsabahar) :
छत्तीसगढ़ के जशपुर में फरसाबहार इलाक़ा नागलोक के नाम से मशहूर है। तपकरा, पत्थलगांव, बगीचा, कासांबेल में कॉमन, ब्लैक और बेंडेड करैत, कोबरा तथा ग्रीन पिट वाइपर समेत 40 प्रकार के सांप पाए जाते हैं। इनमें दुनिया की सबसे जहरीली 6 में से 4 प्रजातियां यहां मिलती हैं। जानकारों का कहना है कि यहां की भुरभुरी मिट्टी और मौसम सांपों के प्रजनन के लिए अच्छा है। इसलिए इनकी तादाद यहां ज्यादा है। बारिश में इनके रहने की जगहों में पानी भर जाता है तो सूखी जगहों और शिकार की तलाश में इंसानी बस्तियों में आ जाते हैं। यहां स्नेक पार्क बनाने की भी प्लानिंग है, जिसमें एंटी वेनम के लिए सांपों का जहर भी निकाला जाएगा। स्थानीय सरकार के अनुसार यहाँ प्रतिवर्ष १० लोगो की मर्त्यु सांपो के कटाने से होती है.
इन्द्रावती नदी की सात धारायें ( Indravati river in seven streams):
जगलपुर से करीब 70 किलोमीटर दूर बारसूर के पास इंद्रावती नदी सात टुकड़ों में बंटकर बहती है। कुछ किमी जाकर सातों धाराएं इस जगह पर एक हो जाती हैं। सभी सात धाराओं के पानी का रंग वन और पहाड़ी इलाकों में अलग अलग बहने के कारण थोड़ा अलग- अलग हो जाता है। जब यह एक जगह मिलती हैं तो इनके अलग- अलग रंग काफी दूर तक नजर आते हैं। घने जंगलों के बीच स्थित यह जगह बेहद खूबसूरत है। बारिश में सात धाराओं का नजारा साफ नजर आता है। सभी धाराएं मिलकर आखिरी में पानी का रंग नीला कर देती हैं। यह इसकी खूबसूरती को चार चांद लगा देता है।
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गर्म कुण्ड (Hot spring) :
मुझे ये जगह सबसे आश्चर्यजनक लगाती है. यहाँ आप सर्दियों में नहाने से मन नहीं कर सकते. अम्बिकापुर से रामानुजगंज जाने वाली सड़क पर करीब 80 किलोमीटर दूर नेशनल हाइवे के पास गर्म पानी के आठ- दस कुंड हैं। इनमें जमीन के भीतर से गर्म पानी आता है। यहां पर बिना किसी बोर या मोटर के जमीन से लगातार पानी निकल रहा है, वो भी गर्म पानी। पानी इतना गर्म कि मिनटों में अंडे उबल जाएं, पोटली में बंधा चावल पक जाए। यदि लापरवाही बरती तो हाथ भी जल सकता है। इसके अलावा लगातार भाप भी निकलती रहती है। दूर-दूर से लोग इस गर्म पानी के कुंड को देखने के लिए आते हैं। यहां पानी का तापमान 96-100 डिग्री सेंटीग्रेट तक होता है। इस पानी में सल्फर यानी गंधक की मात्रा मिलती है। इससे त्वचा रोग ठीक होते हैं। इस कारण ये आकर्षण का केंद्र है। मकर संक्रांति के मौके पर यहां आकर लोग नहाते हैं। इसके लिए गरम पानी को ठंडा कर लिया जाता है। इस दिन यहां पर एक तरह से मेला जैसा लग जाता है।
मैनपाट (Mainpat's Spongy ground) :
मेंपोट छत्तीसगढ़ का छोटा सा गांव है जो की अंबिकापुर से ४०-४२ किलोमीटर की दूरी पर है. इस जगह को "छत्तीसगढ़ का शिमला" भी कहा जाता है. यहां जलजला नाम की जगह पर चार एकड़ जमीन लंबे समय से लोगों की दिलचस्पी का केंद्र है। इस स्पंजी जमीन पर उछलने से आसपास की जमीन पर कंपन का अनुभव होता है। ठीक उसी तरह, जैसा किसी गद्दे पर उछलने से महसूस हो सकता है। 1997 में जबलपुर में भूकंप आने के बाद यह बना था। एक्सपर्ट्स का मानना है कि जमीन के अंदर का दबाव तथा पोर स्पेस (खाली स्थान) में सॉलिड के बजाय पानी भरा हुआ है। इसलिए भी यह जगह दलदली और स्पंजी लगती है।
टिनटिनी पत्थर (Tintini stone ):
अम्बिकापुर से करीब 10 किलोमीटर दूर दरिमा हवाई पट्टी के पास एक बहुत पुराना पत्थर है। इस पर पत्थर को मारो तो ठीक वैसी ही आवाजें आती हैं, जैसे घंटियों में होती हैं। इस पत्थर से टकराने वाली चीज की हार्डनेस और मैटलिक कंटेंट के आधार पर आवाजें भी अलग-अलग निकलती हैं। हालांकि सारी आवाजें सरल भाषा में टनटनाहट जैसी होती हैं। सुरीली मैटलिक ध्वनि के कारण इसका नाम टिनटिनी पत्थर पड़ा है। इसे लेकर आसपास कई तरह के किस्से- कहानियां हैं। कुछ लोग इसे दूसरे ग्रह या उल्का का पत्थर भी मानते हैं।
अंधेरी कुटुमसर गुफा (Kutumsr dark cave) :
कुटुंबसर गुफा तीरथगढ़ झरने के पास, कांगर घाटी के पीछे विद्यमान है. ये जगह, जगदलपुर से ४०-४२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह गुफा चूना पत्थर से बनी संरचनाओं और अंधी मछलियों के लिए मशहूर है। कुटुमसर गुफा को साइंनटिस्ट ढाई सौ करोड़ साल पुरानी बताते हैं। उनका यह भी कहना है कि ईसा से चार-छह हजार साल पहले यहां आदिमानव रहा करते थे। स्थानीय भाषा में कुटुमसर का मतलब होता है पानी से घिरा किला। माना जाता है कि कभी यह इलाका पानी में डूबा हुआ था। कुटुमसर गुफा चूने के पत्थर से बनी संरचनाओं के कारण प्रसिद्ध है। इन्हें स्टेलेग्माइट व स्टेलेक्टाइट कहा जाता है। इसे पर्यटन के लिए विकसित किया जा रहा है। गुफा के भीतर झींगुर, मकड़ी, चमगादड़, सांप, दीमक जैसे जीव जंतु हैं, लेकिन अंधी मछलियां रहस्यमयी हैं। सूर्य की रोशनी नहीं मिलने के कारण आंखों की पुतलियां विकसित नहीं हो पातीं। माना जाता है कि लंबे समय तक अंधेरे में रहने से ये अंधी हो गईं। इस गुफा को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करवाने के प्रयास हो रहे हैं। अगर आप ये जगह घूमने जा रहे है तो ध्यान रखे वह कोई दुकान या रेस्ट्रोरेन्ट नहीं है, खाने, पीने की चीज़ो को साथ लेकर जाये.
छत्तीसगढ़ का नागलोक (फरसाबहार) ( Snakland in Farsabahar) :
छत्तीसगढ़ के जशपुर में फरसाबहार इलाक़ा नागलोक के नाम से मशहूर है। तपकरा, पत्थलगांव, बगीचा, कासांबेल में कॉमन, ब्लैक और बेंडेड करैत, कोबरा तथा ग्रीन पिट वाइपर समेत 40 प्रकार के सांप पाए जाते हैं। इनमें दुनिया की सबसे जहरीली 6 में से 4 प्रजातियां यहां मिलती हैं। जानकारों का कहना है कि यहां की भुरभुरी मिट्टी और मौसम सांपों के प्रजनन के लिए अच्छा है। इसलिए इनकी तादाद यहां ज्यादा है। बारिश में इनके रहने की जगहों में पानी भर जाता है तो सूखी जगहों और शिकार की तलाश में इंसानी बस्तियों में आ जाते हैं। यहां स्नेक पार्क बनाने की भी प्लानिंग है, जिसमें एंटी वेनम के लिए सांपों का जहर भी निकाला जाएगा। स्थानीय सरकार के अनुसार यहाँ प्रतिवर्ष १० लोगो की मर्त्यु सांपो के कटाने से होती है.
इन्द्रावती नदी की सात धारायें ( Indravati river in seven streams):
जगलपुर से करीब 70 किलोमीटर दूर बारसूर के पास इंद्रावती नदी सात टुकड़ों में बंटकर बहती है। कुछ किमी जाकर सातों धाराएं इस जगह पर एक हो जाती हैं। सभी सात धाराओं के पानी का रंग वन और पहाड़ी इलाकों में अलग अलग बहने के कारण थोड़ा अलग- अलग हो जाता है। जब यह एक जगह मिलती हैं तो इनके अलग- अलग रंग काफी दूर तक नजर आते हैं। घने जंगलों के बीच स्थित यह जगह बेहद खूबसूरत है। बारिश में सात धाराओं का नजारा साफ नजर आता है। सभी धाराएं मिलकर आखिरी में पानी का रंग नीला कर देती हैं। यह इसकी खूबसूरती को चार चांद लगा देता है।
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incredible Chhattisgarh |
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