सनातन धर्म में वर्ण कितने प्रकार के होते है?

वर्ण व्यवस्था कितने प्रकार के हैं? वर्ण क्या है वर्ण व्यवस्था के प्रकारों का वर्णन कीजिए? ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र की उत्पत्ति कैसे हुई








कहते है सनातन धर्म में समाज रहने वाले मनुष्यों को उनके चार कर्मो को चार वर्णो के आधार पर पहचाना जाता है। पर मुझे जितना भी ज्ञान है उस हिसाब से जितना जानता हूँ वो इस प्रकार है। इस जानकारी को टाइमपास या सकारात्मक रूप में ही देखे। क्यों वो आगे बतायूंगा। -


 

प्राचीन काल में सामाजिक मनुष्य को पहचानते होंगे? 

उसी सामाजिक मनुष्य को उसी पुराने तरीके से पहचानने की कोशिश करे तो - (2023)

ब्राह्मण वर्ण/कर्म

ब्राह्मण,गुरु, ऋषि, मुनि इत्यादि

शिक्षक, अध्यापक, प्रोफेसर, वैज्ञानिक इत्यादि

क्षत्रिय वर्ण/कर्म

राजा, मंत्री, सैनिक इत्यादि

प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, अन्य मंत्री, पुलिस, सेना इत्यादि

वैश्य वर्ण/कर्म

व्यापारी, बनिया, साहूकार इत्यादि

रेहड़ी वाले से लेकर बिजिनेसमेन तक

शूद्र वर्ण/कर्म

भृत्य, नौकर, चाकर, दास, आदि नाम

किसी भी प्रकार की प्राइवेट व् सरकारी नौकरी वाले

 

लेकिन कुछ ऐसे भी थे जो इस समाज से बाहर निकाल दिए गए। ऐसे लोगो को सिर्फ पहचाना जाता है, और समाज में बच्चो को बताया जाता था, की इनसे दूर रहे जिसे आतंकियों और अंग्रेजों ने छुआछूत का नाम दिया। इन्हे किसी वर्ण में शामिल नहीं किया जा सका अर्थात समाज का हिस्सा न पहले थे और न आज है। इसी चिढ में ये समाज में फूट डालकर तोड़ने में लगे रहते है।  उन्हें कहते है -


सनातन धर्म में वर्ण कितने प्रकार के होते है?


अधम / नीच

नीच कर्मो में रत निकृष्ट, दुष्ट; बदमाश, पापी, दुराचारी/ बलात्कारी / स्त्री का व्यापार करने वाले, मानव /गाय का मांस भक्षण करने वाला इत्यादि

Rapist, 

Scammers, 

चोर, अपराधी,

 स्कैम करने वाले, दलाल,  इत्यादि


जैसे - 

  • अंगद ने रावण को स्त्री अपहरण के कारण अधम और नीच कहा जबकि ऋषि पुत्र था। 
  • प्रभु श्री राम ने बालि को छुपकर मारा और बताया कि अधम और नीच को किसी भी प्रकार से मारा जा सकता है। वहां धर्म और अधर्म नहीं देखा जा सकता। क्युकी तुमने अपने छोटे भाई की स्त्री को बलात अपने पास रखा है। 

अगर इसी उदाहरण को आज के उपलक्ष्य में देखे तो -

मान लो कोई स्त्री व्यापार का निष्कृष्ट काम करता है या कोई Rapist व्यक्ति है, पुलिस उसे पकड़ने के लिए पीछे भागती है। 

वो अधम व्यक्ति अपने गांव में जाकर छुप जाता है और सबसे कहता है की सरकार या पुलिस गांव के लोगो को पकड़ना चाहती है। गांव के लोगो पर वैश्यावृति का आरोप लगाकर सरकार सभी युवाओं को पकड़ना चाहती है। लोग भड़क जाते है और पुलिस और सरकार पर पथराव और आंदोलन करने लगते है। 

पुलिस तो वापस लौट जाती है लेकिन अन्य गांव के लोग उस गांव की उस कहानी (स्त्री के व्यापार ) को सही मानने लगते है और उस गांव से अन्य गांव रिश्ता तोड़ देते है। 

इस कन्फूजन का लाभ आक्रमणकारी और विदेशी लोग उठाते है और जो गांव अन्य गाँवो से कटा हुआ था उसे पहले अपने पाले में लेते है।  मतलब एक अधम व्यक्ति पूरे समाज या गांव का पतन कर सकता है। 

(ये मनगढंत उदाहरण है, अपने विवेक का इस्तेमाल करे  अगर विवेक नहीं है तो योगबशिष्ठ पढ़ने की सलाह देता हूँ  (Smile) )

क्या वर्ण व्यवस्था समाज को विभाजित करती है?

वर्ण व्यवस्था समाज को चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) में विभाजित नहीं करती है बल्कि समाज में रहने वाले सभी लोगो को उनके हुनर या उनके कार्य के आधार पर उन्हें पहचान, उनके कर्म अर्थात कर्तव्यों के अनुसार देती है।  

क्युकी पिता अपने पुत्र को बचपन से ही अपना हुनर या कौशल अपने बच्चे को सीखाता रहता है। तो उससे ज्यादा हुनर या कौशल किसी अन्य में होना मुश्किल हो पाता  था।  यह उस समय नौकरी की गारंटी या आरक्षण की तरह माना जा सकता है। 

ये कर्म और हुनर आज भी है और लोग इन्ही चारो कर्मो में से किसी एक कर्म को जीवन यापन का मुख्य तरीका बनाते है। 

आज अगर उन्हें पहचाने तो कैसे पहचानेगे? वही ऊपर दिए गए फॉर्मूले से -



 

प्राचीन काल में सामाजिक मनुष्य को पहचानते होंगे? 

उसी सामाजिक मनुष्य को उसी पुराने तरीके से पहचानने की कोशिश करे तो - (2023)

ब्राह्मण वर्ण/कर्म

ब्राह्मण,गुरु, ऋषि, मुनि इत्यादि

शिक्षक, अध्यापक, प्रोफेसर, वैज्ञानिक इत्यादि

क्षत्रिय वर्ण/कर्म

राजा, मंत्री, सैनिक इत्यादि

प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, अन्य मंत्री, पुलिस, सेना इत्यादि

वैश्य वर्ण/कर्म

व्यापारी, बनिया, साहूकार इत्यादि

रेहड़ी वाले से लेकर बिजिनेसमेन तक

शूद्र वर्ण/कर्म

भृत्य, नौकर, चाकर, दास, आदि नाम

किसी भी प्रकार की प्राइवेट व् सरकारी नौकरी वाले

 

परिवर्तित सच -

जैसे आज ब्राह्मण, नाई, कसाई, बुनकर, कुम्हार इत्यादि आपने पुश्तैनी काम छोड़कर फैक्ट्री में मारे-मारे फिर रहे है वहां पर भी वो सूद्र रूप ही है और आज अपने उसी काम (काम के प्रकार अलग अलग हो सकते है) के लिए आरक्षण भी चाहते है   

लेकिन उनका पुश्तैनी काम जिसमे आरक्षण पहले से था आपका काम आपके बेटे को भी मिलेगा वो गारंटी खत्म हो गयी और अन्य लोग जो इन वर्ण से बाहर के थे उन्होंने वो काम हथिया लिया। 

चाहे तो समाज में आज नज़र दौड़ा ले। कि आपके दादा जी और पिता जी के छोड़े हुए कार्य कौन कर रहा है और आपके लोग क्या कर रहे है ?

इतना पता है, प्रत्येक व्यक्ति अपने प्रत्येक अंग से समान प्रेम करता है।  चाहे शूद्र हो, ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो, या वैश्य। सभी भगवान् विष्णु के अंग से प्रकट हुए है। सभी सम्माननीय है ।

सनातन धर्म में वर्णो के आधार पर सामाजिक मनुष्य की जीविका सुरक्षित रखने का प्रयास किया गया था। वर्ण पहचान का आधार है, जाति में विभाजित करने का नहीं। स्त्री पुरुष के आधार पर भी कोई भेदभाव नहीं है।  वेदो में एक स्त्री भी ज्ञान के मामले वैज्ञानिक है जिसका नाम - गार्गी है। 

मैं (प्रदीप) चारो वर्ण के मनुष्यों को बड़ी श्रद्धा के साथ प्रणाम ही नहीं बल्कि चरण स्पर्श करता हूँ । आप चारों   (क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र वर्ण के लोगो ) हेय नहीं बल्कि श्रेय हो।  



Also Readआज के युग में अर्थात 2023 में शूद्र कौन है?

नोट - जरुरी नहीं कि मेरे द्वारा दी गयी जानकारी सही हो क्युकी मैंने सिर्फ वो बताया जो मैं सोचता हूँ।  क्युकी  -

भगवान् के पास है दिव्य दृष्टि, देवताओ के पास है गरुण दृष्टि, ऋषियों के पास है ज्ञानदृष्टि,  और हम मनुष्यो के पास सर्प दृष्टि। 


अगर मेरी जानकारी आपको पसंद आती है तो मुझे फॉलो करे, और पोस्ट के अपडेट सबसे पहले पाए।

COMMENTS

  1. You and your thought is completely based on real Vedic philosophy.

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I am waiting for your suggestion / feedbacks, will reply you within 24-48 hours. :-)

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