कोई इसे Premanand controversy, कह रहा है, कोई Radha Rani Controversy, कोई Pandit Pradeep Mishra का interview ले रहा है। तो उधर Maha Panchayat Barsana
आजकल जिस साधन अर्थात यूट्यूब का उपयोग ज्ञान को देने में करना चाहिए था, तो वहां एक नया ट्रेंड शुरू हुआ है। तेरा भगवान बड़ा की मेरा भगवान्। तो इधर मीडिया में बैठे विधर्मी निकृष्ट तत्व इसे नमकीन समाचार बनाकर प्रथम पृष्ठ पर बार बार एडिट करके छाप रहे है। कोई इसे Premanand controversy, कह रहा है, कोई Radha Rani Controversy, कोई Pandit Pradeep Mishra का interview ले रहा है। तो उधर Maha Panchayat Barsana के समाचार कह कर चला रहे है। Barsana में क्या विकास हुआ है और क्या नहीं, अब ऐसे समाचारो से किसी को लेना देना नहीं है।
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इतने दिन से सिर्फ यही विचार आ रहा है बार बार कि दुसरो को क्षमा का प्रवचन देने वाले क्या स्वयं किसी को क्षमा नहीं कर सकते? क्या ऐसी घटनाओं का अंत सिर्फ निंदा और श्राप से ही होना आवश्यक है? खैर मुझे क्या, मैं तो मुर्ख हूँ। मैं किसी को क्या बता सकता हूँ।
ये सब उस भगवान् की माया है। जिस माया में कई बार हमारे प्यारे गुरुदेव श्री नारद भगवान् उलझ गए थे। तो आजकल ऐसा कुछ होना आश्चर्य चकित नहीं करता। थोड़ा सा बता देता हूँ कब कब फसे थे -
- जब श्री नारद ने क्रोध में आकर श्रीहरि को मनुष्य (श्रीराम) बनकर पृथ्वी पर अपने कर्म भोगने का श्राप दिया था। उससे पहले की घटना।
- जब श्री नारद गुरुदेव जी ने श्री कृष्ण से माया का परिचय पूछा उसके बाद हुयी घटना ।
खैर मुझे क्या, मैं तो मुर्ख हूँ। मैं किसी को क्या बता सकता हूँ।
जो भक्त, साधक या साधू अपने क्रोध, भाषा, और निंदा पर नियंत्रण नहीं रख सकते, और वे अपने आपको साधक या साधू कहते है? अर्थात उन्होंने क्या और किसे साधा ? और अगर साधने में कही कुछ कमी है तो ये भी अच्छा ही हुआ। तो जो होता है सब अच्छे के लिए होता है। श्रीभगवान को अपने भक्तो की बहुत चिंता रहती है। इस घटना से वे सभी साधक या साधू अपने अंदर झांक कर देख सकते है। कि वे अपने मार्ग में कितने सफल हुए है। वे अपनी अज्ञानता, अहंकार, कर्म इत्यादि पर पुनर्विचार कर सकते है। खैर मुझे क्या, मैं तो मुर्ख हूँ। मैं किसी को क्या बता सकता हूँ।
यूट्यूब पर होड़ मची है कोई सभी देवी देवताओ को राधा रानी का नौकर बता रहा है, उनका पीकदान हाथ में खड़ा लेकर बता रहा है। कोई शिव जी को नौकर बता रहा, वे श्री राम के आगे खड़े है। कोई श्री राम को वे शिवजी और माता के आगे खड़े है। , तो कोई विष्णु भगवन को, जो आदिशक्ति के सामने हाथ जोड़कर खड़े है। ।
तो इधर कोई श्री कृष्ण भगवान को, शिव जी, को, श्रीराम को, मां आदिशक्ति को सुप्रीम गॉड बता रहे है, कभी कभी ऐसा लगता है कि सब भ्रम के सागर में गोते लगा रहे है। लेकिन वे भी असत्य नहीं बोल रहे। खैर मुझे क्या, मैं तो मुर्ख हूँ। मैं किसी को क्या बता सकता हूँ।
लगे हाथ, यूट्यूब पर अन्य साधू, कथावाचक और कुछ गृहस्थ साधक भी क्रोध की भाषा में एक दूसरे के इष्ट की निंदा और श्राप दे रहे है। क्या वे अपने नामजप, भक्ति, और साधना, इस कलयुग के प्रभाव में आकर नष्ट तो नहीं कर रहे है? हालाँकि इसमें कुछ कालनेमि की तरह बहरूपिये भी है। वे भी हाथ साफ़ कर रहे है, लेकिन श्री भगवान् के प्रति उनकी चिढ उनके रूप को कभी कभी प्रदर्शित कर ही देती है। खैर मुझे क्या, मैं तो मुर्ख हूँ। मैं किसी को क्या बता सकता हूँ।
जिसने जिसका स्वाद लिया वह उसी के गुण गाता है। जैसे मेरे लिए श्रीहनुमान, माँ आदिशक्ति, श्री महादेव, श्री विष्णु, श्रीब्रह्मदेव में तनिक मात्र अंतर नहीं है। अगर कोई किसी को श्रेष्ठ या सर्वश्रेष्ठ बताता है तो समझो वह अभी तक भेद-बुद्धि में ही फंसा पड़ा है। खैर मुझे क्या, मैं तो मुर्ख हूँ। मैं किसी को क्या बता सकता हूँ।
लेकिन जब हम दुसरो दोष देखने लगते है, तो कही न कही, सबसे पहले अपने ही इष्ट को नाराज़ करते है। क्युकी भगवान् अपने भक्त की निंदा नहीं सह सकते। किसी ने कुछ कह दिया, उन्हें क्षमा करो। तिल का ताड बनाकर उसकी निंदा करना उचित नहीं लगता । खैर मुझे क्या, मैं तो मुर्ख हूँ। मैं किसी को क्या बता सकता हूँ।
भाव और शास्त्र ज्ञान में अंतर -
- तंत्र को साधने वाला तांत्रिक के प्रवचन
- यज्ञ करने वाले साधुओं के प्रवचन
- नामजप करने वाले भक्त के प्रवचन
में भाव और भावेश के कारण अंतर हो सकता है।
लोगो को भी चाहिए कि अंतिम ज्ञान शास्त्र को ही माने, ऐसा स्वयं शास्त्र भी कहते है। इसलिए जनता अपने मार्ग को न त्यागकर सिर्फ ज्ञान ग्रहण करे, और उसके अनुसार तंत्र मार्ग, मंत्र मार्ग, भक्ति मार्ग, सेवा मार्ग इत्यादि मार्गो का चयन करे। ज्ञान हो जायेगा तो गुरु स्वयं मिल जायेगे, उन्हें खोजने की आवश्यकता नहीं है। शुरुआत शास्त्रों को गुरु मानकर, गुरु दत्तात्रेय और श्री बटुक भैरव नाथ को याद करके अपनी आध्यात्मिक यात्रा को शुरू करे।
अगर शरीर नष्ट हो गया तो ब्रह्मण्ड के अंधेरो में कहा खो जायेगे पता भी नहीं चलेगा। जैसे हंस दूध पी लेता है और पानी छोड़ देता है। इसी प्रकार साधुओं, साधकों और भक्तो के वचनों को सुने। और अपने ज्ञान से उत्पन्न विवेक के माध्यम से ही कार्य करे। ज्ञान नहीं होगा तो आपके स्वयं का विवेक भी छलिये का कार्य करेगा। इसलिए शास्त्रों की शरण ही अंतिम साधन होना चाहिए ।
इसलिए इन चक्करो में न पड़े, ऐसा कौन सा मनुष्य इस पृथ्वी पर है जो मेरे प्रभु के मान या सम्मान पर चोट कर सके। निंदा सुनने का दोष अवश्य लगता है, बचना चाहिए। गलत को गलत और सही को सही कहना भी चाहिए लेकिन नौवत निंदा, और श्राप तक नहीं आनी चाहिए।
क्युकि
अगर आप ज्ञानी है तो बताने की कृपा करे कि इनमे कौन किसका आराध्य है ? और कौन किसके आगे पानी भरता है? या पीकदान लेकर खड़ा होता है?
श्रीआदिशक्ति + श्रीमहादेव = श्रीअर्धनारेश्वर
श्री हनुमान + श्री महादेव = श्री महादेव
श्रीकृष्ण + श्रीराम = श्रीविष्णु भगवान्
मां वैष्णवी + मां शिवदूती + मां ब्रह्मचारणी + मां इन्द्राणी आदि शक्तियों से मिलकर बनी है आदिशक्ति
और
श्रीहनुमान + श्रीमहादेव के आराध्य श्रीराम है।
श्रीराम + श्रीकृष्ण + श्रीविष्णु के आराध्य श्री महादेव
श्रीराधा + श्रीगोपेश्वर महादेव के आराध्य श्रीकृष्ण
श्रीलक्ष्मी + गोपी चन्दन + गोपेश्वर महादेव के आराध्य श्रीविष्णु है।
श्री गोपेश्वर महादेव + श्री कृष्ण + श्री ब्रह्मदेव स्तुति करते श्री राधा की।
श्री विष्णु भगवान् + श्री ब्रह्मदेव + श्री महादेव स्तुति करते है माँ आदिशक्ति की
हर कल्प में वो निराकार शक्ति , किसी न किसी साकार रूप में क्रीड़ा करती है। काहे भ्रमित है भेद-बुध्दि के कारण।
तो अब बताओ, इनमे कौन किसका आराध्य, मालिक या नौकर है ?
भगवान श्री काकभुशुण्डि के बारे में हर पल याद कर लेना चाहिए अगर कभी भेद-बुध्दि किसी के विवेक का हरण करती है, तो ।
और अंत मैं क्या सोचता हूँ? What I Think -
मैं मुर्खानंद तो सभी विग्रहो में सभी को देखता हूँ। राधा रानी, शिव जी, विष्णु भगवान्, श्री राम, इत्यादि उनकी समस्त श्रष्टि को देखता हूँ। क्युकी मैं -
- तांत्रिक के प्रवचन
- साधुओं के प्रवचन
- भक्त के प्रवचन
को भगवान् की वाणी समझकर सुनता हूँ। लेकिन प्राथमिकता शास्त्र ज्ञान को देता हूँ। और उनके अलग अलग प्रकार के भाव को सुनकर आनंदित होता हूँ। किसी के कुछ भी कहने से अपना मार्ग नहीं भटकता, ऐसा अहंकार नहीं, बस थोड़ा सा अनुभव है। आगे मेरे सखा, मेरे पिता, मेरे गुरु, मेरे नाथ और मेरी करुणामयी मां की इच्छा।
गृहस्थ आश्रम में रहने वाले लोग चाहे तो अपनी प्रकृति के अनुसार तंत्र मार्ग, मंत्र मार्ग, भक्ति मार्ग, सेवा मार्ग इत्यादि मार्गो का चयन कर सकते है उससे सम्बन्धित ज्यादा से ज्यादा ज्ञान को सुने या पढ़े। ज्ञान हो जायेगा तो गुरु स्वयं मिल जायेगे, उन्हें खोजने की आवश्यकता नहीं है।
शुरुआत शास्त्रों को गुरु मानकर, गुरु दत्तात्रेय और श्री बटुक भैरव नाथ को याद करके अपनी आध्यात्मिक यात्रा को शुरू करे। अगर शरीर नष्ट हो गया तो ब्रह्माण्ड के अंधेरो में कहा खो जायेगे पता भी नहीं चलेगा।
अंत में बस इतना बताना आवश्यक समझता हूँ कि जिन्हे मेरे प्रभु की परम शक्ति श्री राधा रानी के बारे में जिन्हे ज्ञान नहीं है, उन्हें राधोपनिषद और ब्राह्मणपुराण को श्रध्दापूर्वक अध्ययन करना चाहिए। अन्य शास्त्रों में भी कही न कही श्रीराधे लाड़ली जी की महिमा होगी परन्तु मैं ठहरा अज्ञानी, मुर्ख और अधम, क्या जानूं।
एक प्रार्थना -
हे प्रभु मुझे कृपा करे, और मेरे गुरु पर भी कृपा करे। न मैं गुरु को त्यागु और न गुरु मुझे त्यागे। हम सब पशु है, पिता पशुपतिनाथ हम सभी पर कृपा करे। सनातनी लोगो की आध्यात्मिक और भौतिक वृध्दि करे।
ॐ जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी।
दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा, स्वधा नमोऽस्तुते॥
जय श्री हनुमान, जय श्री राम, जय श्री हनुमान - हर हर महादेव
भक्तों से क्षमा प्रार्थना -
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