सपने में आकर मांगी भेंट और चढ़ा दी अपने बेटे की बलि Devi came in dream and asked sacrificed son - स्वयं के भाव पर आधारित है, अर्थात मैं क्या सोचता हूँ
जब मैंने यह खबर न्यूज़ वेबसाइट पर पढ़ी तो कोई हैरानी नहीं हुयी, जबकि न्यूज़ के अनुसार सारा शहर हैरान है । मैं हैरान नहीं हूँ और क्या सोचता हूँ उसे आप चाहे तो समझने की कोशिश कर सकते है। - उदाहरण मात्र के लिए समाचार का लिंक
तो खबर यह है - सपने में आकर मांगी भेंट और चढ़ा दी बेटे की बलि - किसी माँ ने अपने ही 4 साल के बेटे की जान ले ली। बेटे को मारने के लिए फावड़े से काटकर, फिर जलाकर उसकी हत्या कर दी। महिला गिरफ्तार हो गई है, लेकिन सवाल उठता है कि आखिर उसने ऐसा क्यों किया?
समाचार के अनुसार पुलिस पूछताछ में कहानी पता चली -
महिला ने बताया कि 'बीती रात मेरे सपने में देवी मां आईं थी। उन्होंने मुझसे कहा कि तेरे बेटे को हम अपने साथ ले जाना चाहते हैं। सुबह उसे मारकर हमें दे देना। ...
अंधविश्वास या मानसिक रोग?
पति ने बताया कि उसकी पत्नी मानसिक रोगी है। उसकी दवाइयां भी चल रही थीं, लेकिन पिछले करीब डेढ़ साल से उसने दवाइयां लेना बंद कर दिया था। वो ठीक रहने लगी थी। डॉ. बताते है कि 'सिजोफ्रेनिया एक मानसिक बीमारी है, जिसमें इंसान एक अजीब से भ्रम का शिकार हो जाता है। उसे लगने लगता है कि कोई देवी या देवता उससे बातें कर रहा है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता।
What I Think -
मुझे लगता है, ज्ञान की कमी के कारण व्यक्ति अपने धर्म से, देवी देवताओ से, अपने पित्तरो से दूर हो जाता है। तो ये परामनोवैज्ञानिक रोग लगना शुरू हो जाते है। मैं क्या सोचता हूँ इस पर जानिये -
क्यों ? और कैसे शुरुआत होती है ?
- सोशल मीडिया, टीवी, फिल्मे, न्यूज़ इत्यादि के माध्यम से सनातनी लोगो को उनके स्वार्थ से जोड़कर भड़काया जाता है कि सरनेम अर्थात जाति नाम लिखने या लगाने से जातिवाद फैलता है, पूजा-पाठ ब्राह्मणो के द्वारा फैलाया गया दिखावा या ब्राह्मणवाद है तो वे अपना उपनाम या सरनेम इस्तेमाल करना बंद कर देते है।
- इससे उनके पित्तर नाराज़ हो जाते है, क्युकी उनका आशीर्वाद स्वरुप या उनकी पीढ़ी की पहचान कराने वाला सिर्फ सरनेम ही होता है। जैसे ही पित्तर अर्थात घर के शुभ चिंतक साथ छोड़ते है तो उस कुल की कुलदेवी भी नाराज़ हो जाती है। वे भी ऐसे लोगो को त्याग कर चली जाती है।
- अब विवेक न होने स्थिति में अपने और अपने परिवार के जीवन को सिर्फ स्वार्थ के लिए जीते है, ये आपस मे प्रेम का दिखावा भी करते है तो स्वार्थ के लिए, इन्हे प्रेम का अर्थ भी पता नहीं होता। नेता भी चुनते है स्वार्थ के लिए, इनके जीवन में ईमानदारी, और सत्य की कोई जगह नहीं होती। ऐसे लोगो को अन्य धर्म के लोग काफिर कहते है। ऐसे लोग, किसी भी जाति या धर्म में हो सकते है। जो अपने माता पिता के विरोधी होती है। अर्थात माता-पिता के धर्म या प्रेम का जवाब स्वार्थ या अधर्म से देते है।
- ऐसा घर बिना सुरक्षा के रह जाता है। और फिर कोई भी नकारात्मक शक्ति इन खुले घरो, मस्तिष्क और जीवन में प्रवेश करती है और अपने भ्रम से ऐसे लोगो के परिवारों को जकड़ती है। भ्रम की स्थिति में होने से ये विवेक शून्य हो जाते है। नकारात्मक शक्ति ऐसे घरो में खुलकर रस लेती है। ऐसे लोग जब बिना कवच के घर के बाहर निकलते है तो नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव में आ जाते है।
- आजकल कुछ लोग तो लालच या स्वार्थ के लिए यूट्यूब से सीखकर, कोई भी मंत्र का जाप करने लगते है, या किसी को भी भोग-भेंट देने लगते है, या किसी पडोसी के कहने पर किसी दूसरे देवता के थान इत्यादि स्थानों पर चले जाते है, या दूसरे धर्म की शक्ति को चढ़ाई गयी बलि का मांस (जैसे कि सनातन परिवार में जन्मे, 'चाहे वे जंगल में रहने वाले आदिवासी ही क्यों न हो' के लिए हलाल मांस वर्जित है ), प्रसाद या कोई भी खान पान ग्रहण कर लेते है। कभी-कभी प्रारब्धवश भी हम लोग इनका शिकार बन जाते है।, जैसे हम किसी ऐसे होटल में खाना खा लेते है, जहाँ वे उसमे फूंक कर या थूककर अपनी शक्ति डालते है, क्युकी उन्हें संख्याबल बढाकर सनातन को समाप्त करना है। इसलिए देवी देवता अपने हाथ में अस्त्र-शस्त्र धारण करते है। चूँकि सुरक्षा आवरण होता नहीं तो फिर हमारे जीवन में हु-तू-तू का खेल शुरू हो जाता है ।
- ऐसे लोग यूट्यूब या किसी भी व्यक्ति का मंत्र जाप करते है तो नकारामक शक्तियां तुरंत साक्षात्कार देती है, अर्थात भ्रम के ऊपर एक भ्रम होता है कि मुझसे कोई माता या देवता बहुत प्रसन्न है, फिर जैसा वे कहते है, ये करते जाते है, और अंततः विनाश को प्राप्त होते है। स्वयं सोचिये कि अगर किसी शक्ति का साक्षात्कार होना, अगर इतना ही आसान होता तो कोई मनुष्य तपस्वी क्यों बनता?
इसलिए ज्ञान की शरण में जाए, शास्त्रों के एक-एक शब्दों पर पूरा विश्वास करे।
क्या करना चाहिए -
- अपना सरनेम कभी न त्यागे
- अपनी कुलदेवी को किसी भी अच्छी तिथि या त्यौहार पर सात्विक भोग या दीपदान अवश्य दे।
- अपने पूर्वजो और जाति पर गर्व करे
- अपने ज्ञान को बढ़ाते रहे, ज्ञान की शरणागति ले। पहले भगवान् को जाने फिर माने।
- अगर धर्म परिवर्तन हो चूका है, तो घर वापसी के लिए विभीषण की तरह शरणागति ले, लेकिन मंत्र जाप न करे, पहले एक या दो साल सिर्फ पुराणों में दी गयी स्तुति ही करे।
- संस्कृत नहीं आती तो हिंदी में स्तुति करे, 5-6 महीने में भाव बनेगा तो भाव से करे। ऐसा करने से भ्रम और अज्ञानता का नाश होगा। अब आप अपने पूर्वजो, कुलदेवी को दीपदान शुरू कर सकते है। क्युकी वे प्रश्न होकर अवश्य ही अपनी गोद में आपके परिवार को ऐसे लेंगे जैसे मां से बिछुड़ा हुआ कोई बच्चा मिलता है।
चूँकि महिला ने बताया था कि 'बीती रात मेरे सपने में देवी मां आईं थी। उन्होंने मुझसे कहा कि तेरे बेटे को हम अपने साथ ले जाना चाहते हैं। सुबह उसे मारकर हमें दे देना।" तो लोगो को लगेगा कि किसी सनातनी देवी ने ऐसा किया होगा, इस भ्रम से भी बचना चाहिए। बिना जाने किसी को भला-बुरा न कहे।
याद रखे - www.pradeeptomar.com
नोट - यह ब्लॉग पोस्ट स्वयं के भाव पर आधारित है, अर्थात मैं क्या सोचता हूँ। अगर आपको लगता है कि मैं स्वयं किसी भ्रम में हूँ तो यूट्यूब पर ऐसे मन्त्र और शक्तियों को सिद्द करने वालो को सर्च कर ले। फिर भी किसी को लगता है कि मैं भी किसी भ्रम में हूँ, फिर आप इसको केवल एक ब्लॉग पोस्ट के रूप में देखे। मेरा उदेश्य किसी अंधविश्वास को बढ़ावा देने को नहीं है, और न ही इसका किसी जीवित, मृत, परिवार, जाति या धर्म से सम्बन्ध है। सिर्फ स्वयं के विचारमात्र है,जो किसी के लिए गलत भी हो सकते है। इसे फैंटेसी के रूप में पढ़ें और मजे ले.
वेद भगवान्, पुराण भगवान् और उपनिषद भगवान् की हर कल्प, हर युग में जय हो। हे नाथ मैं तुम्हे कभी न भूलू। जय श्री राम, जय श्री हनुमान - हर हर महादेव
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