Dipawali - छत्तों को गर्म करके मोम (Beeswax) निकाला जाता है, तो उस गर्मी से अंदर मौजूद कोई भी अंडा या लार्वा जीवित नहीं बचता। यहीं पर जीवहत्या होती है
दिवाली सनातन धर्म का बहुत ही बड़ा त्यौहार है, क्युकी इस समय अभी किसी अन्य कल्प और काल में समुद्र मंथन चल रहा होगा, और वहां माता लक्ष्मी का प्राकट्य हो रहा होगा, तो वही किसी अन्य काल में श्रीराम अयोध्या वापस आ रहे होंगे, तो वही अन्य किसी काल में वामन भगवान् राजा बलि को वरदान दे रहे होंगे। तो वही किसी अन्य किसी कल्प या युग में श्रीभगवान् नरकासुर का वध कर रहे होंगे। तो वही अन्य किसी काल में यमराज अपनी बहन के घर भोजन कर रहे होंगे।
इस प्रकार से ये चार पांच दिन बहुत ही दिव्य होते है।
इसलिए दिवाली जैसे दिव्य त्यौहार और दिवस पर मोमबत्ती जलाने को पूर्णतः ठीक नहीं माना जा सकता है, इस बारे में मैं क्या सोचता हूँ उसे मेरी दृष्टि से अवश्य देखना चाहिए।
१ . मोमबत्ती न जलाने के विशेष कारण -
- जब हम मिट्टी के दीये खरीदते हैं, तो हम सीधे तौर पर स्थानीय कुम्हारों और छोटे कारीगरों की मदद करते हैं, जिनकी आजीविका इसी काम पर निर्भर करती है। यह "Vocal for Local" का एक बेहतरीन उदाहरण है।
- बाज़ार में मिलने वाली कई फैंसी और सस्ती मोमबत्तियाँ बाहर के देशों से आयात की जाती हैं। इन्हें खरीदने से देश का पैसा बाहर जाता है और स्थानीय अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है।
- ज़्यादातर मोमबत्तियाँ पैराफिन वैक्स (Paraffin Wax) से बनती हैं, जो पेट्रोलियम का एक बाय-प्रोडक्ट है। इसे जलाने पर हवा में कुछ हानिकारक रसायन और कार्बन कण निकलते हैं, जो वायु प्रदूषण को बढ़ाते हैं।
२. मोमबत्तियाँ शुद्ध सात्विक होना मुश्किल है -
जैसा की हम जानते है कि मोमबत्तियाँ मधुमक्खी के छत्ते से भी बनती हैं, जब मधुमक्खी के छत्ते से मोम निकाला जाता है, तो उसमें जीवहत्या की संभावना होती है।
छत्ते में अंडे और लार्वा की उपस्थिति -
मधुमक्खी का छत्ता सिर्फ शहद और मोम का घर नहीं होता, बल्कि वह मधुमक्खियों का परिवार (colony) होता है।
ब्रूड चैम्बर (Brood Chamber) -
छत्ते का एक बड़ा हिस्सा ऐसा होता है जहाँ रानी मधुमक्खी अंडे देती है। इन अंडों से लार्वा और फिर नई मधुमक्खियाँ बनती हैं। इस हिस्से के छत्तों में हमेशा अंडे और लार्वा मौजूद रहते हैं।
हनी सुपर (Honey Super) -
मधुमक्खी पालक (Beekeepers) शहद जमा करने के लिए छत्ते के ऊपर एक अलग हिस्सा लगा देते हैं, जिसे 'हनी सुपर' कहते हैं। वे अक्सर एक "क्वीन एक्सक्लूडर" (Queen Excluder) नामक जाली का इस्तेमाल करते हैं, जो रानी मधुमक्खी को इस हिस्से में आने से रोकती है।
जीवहत्या कैसे और कब होती है?
अगर मधुमक्खी पालक सावधानी नहीं बरतते हैं और शहद के साथ-साथ ब्रूड चैम्बर वाले छत्ते भी निकाल लेते हैं, तो उन छत्तों में मौजूद अंडे और लार्वा भी साथ आ जाते हैं।
जब इन छत्तों को गर्म करके मोम (Beeswax) निकाला जाता है, तो उस गर्मी से अंदर मौजूद कोई भी अंडा या लार्वा जीवित नहीं बचता। यहीं पर जीवहत्या होती है।
3 . दीपदान का महत्व -
दिवाली का त्योहार (Dipawali Festival) मिट्टी के दीयों से जुड़ा है। हिंदू परंपरा में, पूजा और शुभ कार्यों के लिए मिट्टी, घी या तेल को पवित्र माना जाता है। दीया जलाना अंधकार पर प्रकाश की, अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है।
श्रीभविष्यपुराण में श्रीकृष्ण भगवान् ने अर्जुन को बताया कि दीपक घृत या तेल के जलाने चाहिये, वसा, मज्जा आदि तरल द्रव्य युक्त के नहीं। जलते हुए दीप को बुझाना नहीं चाहिये, न ही उस स्थान से हटाना चाहिये। दीप बुझा देने वाला काना होता है और दीप को चुराने वाला अंधा होता है। दीप का बुझाना निन्दनीय कर्म है।
ज्यादा जानकारी यहाँ मिल जाएगी। - दीपदान महिमा या दीप दान करने का क्या फल है?
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मिट्टी का दीया पंचतत्वों (आकाश, वायु, अग्नि, जल, और पृथ्वी) का प्रतिनिधित्व करता है। मिट्टी 'पृथ्वी' का, तेल 'जल' का, बाती 'आकाश' का, लौ 'अग्नि' का और दीये से निकलने वाला ताप 'वायु' का प्रतीक है।
अगर आप नास्तिक/वामपंथी/कम्युनिस्ट है तो भी आपके लिए ये मिट्टी के दीये पूरी तरह से प्राकृतिक और इको-फ्रेंडली होते हैं। वे इस्तेमाल के बाद वापस मिट्टी में मिल जाते हैं और पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुँचाते।
इसलिए मुझे लगता है प्रयत्नपूर्वक मिट्टी के दीपक में ही, अपने सामर्थ्य के अनुसार घी या तेल के दिये जलाकर दीपदान करे और उसका पुण्य भगवान् को समर्पित करे। यह कर्म अवश्य ही आपके कुल और सनातन धर्म की वृद्धि करेगा।
आपको जय श्री राम, जय श्री हनुमान, हर हर महादेव।
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