Ambulance Service लेने से उनके ड्राइवर द्वारा scam या Fraud के बारे में जाने। कैसे प्राइवेट हॉस्पिटल कमीशन का काम चलाते है।
इंसान बहुत सी बाते, अपने अनुभव और बहुत सी बाते दुसरो के अनुभव से सीखता है। आज में भी एक बिलकुल सत्य अनुभव आपको सुना रहा हूँ। आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
ये बात साल 2013 के मार्च या अप्रैल के मध्य की बात रही होगी। एक दिन अचानक मेरी बच्ची की तबियत ख़राब हुयी, शायद उसके गले में कुछ अटक गया था जैसे दूध, पानी या सर्दी का बलगम, जो भी रहा होगा। आनन् फानन में परिवार के सभी लोग बच्ची को लेकर सरकारी DISTRICT HOSPITAL BHIND में लेकर दौड़े।
लेकिन रात के समय भिंड हॉस्पिटल में डॉक्टर मिल जाए तब 2013 में ये बहुत बड़ी किस्मत होती थी। वहां प्रैक्टिस करने वाले लड़के जिन्हे अक्सर कम्पाउंडर बोला करते थे वो मिले। उनके थोड़ा बहुत हाथ पैर मारने पर बच्ची को आराम नहीं मिला वो जोर-जोर से हाथी की तरह चिंघाड़ रही थी। हालाँकि में तो था नहीं में उस समय दिल्ली में था।
मेरे दोस्त यहाँ-वहाँ डॉक्टर को ढूढ़ने में भाग रहे थे। तभी उनका मेरे पास फ़ोन आया - यार बड़ी प्रॉब्लम हो गयी है। यहाँ कोई डॉक्टर नहीं और कम्पाउंडर बोल रहे है की इसे ग्वालियर Refer करना पड़ेगा। क्या करे?
मैं क्या बोलता वही बोला जो अंतिम विकल्प था। मेने कहा ले जाओ। एम्बुलेंस हॉस्पिटल के आस-पास खड़ी होगी। मैं भी यहां से निकलता हूँ. उन्होंने हॉस्पिटल के आस पास भटक कर एक एम्बुलेंस की व्यवस्था की। रात में इमरजेंसी का समय था तो जो पैसे मांगे वो देने पड़े। बुकिंग कन्फर्म हो गयी।
अब यहाँ से आप ध्यान देना -
रास्ते में बच्ची की हालत ख़राब होती जा रही थी। इतने में ड्राइवर बोला कहाँ चलना है ग्वालियर में?
तो पापा ने बोला की सरकारी हॉस्पिटल तो सरकारी में ही Refer करेगा! ये देखो लेटर। डॉक्यूमेंट दिखाए।
ड्राइवर हँसा और बोला - गवर्नमेंट हॉस्पिटल तो बेकार है सब के सब आरक्षण से भर्ती हो जाते है काम कोई नहीं करना चाहता।
पापा ने पूछा - तो आपकी नज़र में ग्वालियर में बच्चो कोई अच्छा हॉस्पिटल है?
उसने कहा - अरे हमारा रोज़ का काम है। सब पता होता है कौन इलाज करता है और कौन नहीं। में आपको बच्चो के स्पेशल अस्पताल में ले चलता हूँ। इसका बहुत बड़ा नाम है
पापा ने कहा - ठीक है। और चैन की साँस भरी।
अब एम्बुलेंस वाले ने ग्वालियर के प्राइवेट कल्याण हॉस्पिटल में छोड़ा रात में। 10,000 रुपये जमा करवाने पर बच्ची को ICU भर्ती कर लिया। मैं दिल्ली से निकल चूका था उप्र रोडवेज की बस पकड़ी और सुबह परिवार द्वारा बताये हॉस्पिटल में पंहुचा। (बीच रास्ते में एक रहस्मयी चमत्कारी घटना हुयी मेरे साथ उसे अगले ब्लॉग में बतायूंगा। )
सुबह 6-7 बजे के आस पास -
हॉस्पिटल में पंहुचा, सेकंड फ्लोर में चढ़ते ही सीढ़ी के बगल से गैलरी के पास ICU का गेट था। सोचा देखु क्या हुआ। लेकिन तभी वहां परिवार के सदस्य ने हाथ में दवाई का परचा थमाया और बोला नीच ग्राउंड फ्लोर पर मेडिकल स्टोर है ये दवाईया लेकर आइये।
मेने वो परचा हॉस्पिटल के मेडिकल स्टोर को दिया, उन्होंने कुछ 5000-6000 के बीच का बिल बनाया और मेने अपने कार्ड से पेमेंट की। दवाई की थैली काफी भरी हुयी थी फिर चुपचाप सीढ़ी के सामने ICU के पास टेबल पर बैठे व्यक्ति के हाथो में दे दी।
सुबह 10-11 बजे के आस पास -
ICU गार्ड दौड़ता हुआ आया बोला बच्ची की दवाई बिगड़ रही है। डॉक्टर साहब को बुलाना पड़ेगा। हम लोग दौड़ते हुए ICU की तरफ भागे। बाहर गेट से झाँका तो देखा 20-25 दिन की बच्ची के पैर और हाथ बांध रखे थे। शायद इसलिए बांधा होगा क्युकी उसे साँस लेने में परेशानी थी तो जोर-जोर से हाथ पैर ICU स्टैंड पर मार रही थी।
मैने कहाँ - डॉक्टर कहाँ है? क्या हुआ है?
उसने बोला - इस समय डॉक्टर को बुलाने का अलग से चार्ज लगेगा। ये ड्यूटी का समय नहीं है।
मेने कहा - कैसी बाते करते हो। आपके हवाले छोड़ रखा है, डॉक्टर कब आएगा और कब जायेगा ये हम लोग कैसे तय कर सकते है। किसी और डॉक्टर को होना चाहिए था यहाँ ।
फिर मेने पूछा - कितना एक्स्ट्रा चार्ज है?
ICU बॉय - 1500 रुपये प्रति घंटा या शायद प्रति विजिट।
मेने कहा - ठीक है जल्दी बुलाओ। मे कुछ घबराकर बोला
उसके बाद में मम्मी पापा के पास गया। मेने बोला कितने रुपये है आपके पास ?
उन्होंने बताया की 15000 के आस पास और है। और फिर मेने जो हुआ उसके बारे में बताया। उन्होंने भी रात में क्या क्या और कैसे कैसे हुआ उस बारे में बताया।
इसी बीच मैं बार-बार ICU बॉय को देख रहा था और उसके आते ही मैंने पूछा कि कब तक आएंगे डॉक्टर साहब?
फिर 25-30 मिनट के बाद डॉक्टर आये। और उनके आते ही दवाई का परचा मेरे हाथ आया । फिर से उसी मेडिकल से 4500 के आस पास की दवाई ली और उस ICU बॉय को दी।
समय दोपहर 2-3 बजे का -
डॉक्टर से हम लोगो ने पूछा - अब कैसी तबियत है?
डॉक्टर ने बताया की - हम लोग कोशिश कर रहे है। अभी कुछ बताना मुश्किल है।
मैने पूछा - आखिर हुआ क्या था??
डॉक्टर ने बताया - वही हम देख रहे है!
उसके बाद हम लोग आपस में बातचीत करने लगे की अभी 24 घंटे भी नहीं हुए थे कि 20,000 से ऊपर खर्च हो चुके है। मेने पूछा अब और पैसे कहा से आएंगे? पापा मम्मी निरुत्तर थे। मेने कहाँ जो अंकल जेवेलरी बनाते है। एक बार उनसे बात करो, वे हमारे शायद फॅमिली ज्वेलर थे जिन्होंने मेरी शादी इत्यादि में जेवेलरी बनायी थी। उनसे मेने बात की। उन्होंने भी मेरी पत्नी की जेवेलरी का ओने पौने का रेट बताया। कारण ये था की उन्होंने बिना बिल के जेवेलरी बनायीं थी, कुछ 2.5 लाख के आस पास। 2012 में शायद लोग बिल नहीं लेते थे क्युकी जेवेलरी वाले बिल देते ही नहीं थे। जिन्हे थोड़ी दुनियांदारी पता थी वो लोग बिल के लिए बोलते थे, उनको यहाँ वहाँ से अर्रेंज करके शायद बिल देते होंगे। बाकि सारा धंधा आपसी व्यवहार और विश्वास पर चलता था।
शाम 5-6 बजे का समय
मैं हताश था की अब क्या होगा। तभी मेरे एक रिश्तेदार जो रिश्ते में मेरी पत्नी की चाची थी। उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया एक तरफ और बोला।
लला तुमको यहाँ आने को किसने बोला था?
मेने मम्मी पापा की तरफ देखा
उन्होंने बताया एम्बुलेंस वाले ने।
फिर उन्होंने बताया - बेटा जब तुमको कमला राजा सरकारी हॉस्पिटल को रेफेर किया गया था तो यहाँ प्राइवेट में किसलिए? एम्बुलेंस वालो का कमीशन होता है। इसलिए वो रास्ते में बेफकूफ बनाते है।
यहाँ से छुट्टी करवायो और वही चलो।
मेने कहाँ आप ग्वालियर की रहने वाली है। अपना परिचय देकर आप मेरी मदद करे।
उन्होंने ICU वार्ड बॉय से बोला तो भड़क गया कहने लगा आप लोगो को बच्ची की हालत नहीं दिखाई दे रही है। यही अगर लड़का होता तो ज़मीन बेंचकर इलाज कराते। लड़की है तो सरकारी में ले जा रहे है।
लेकिन चाची जी अडिग थी बोली हमें कुछ नहीं सुनना आप ट्रांसफर करो अभी।
शाम को 7 -8 बजे का समय -
स्टाफ बदल चूका था नाईट वाला आ गया था। तभी एक मैडम ने मुझे फाइल देते हुए कहाँ की आप पूरा हिसाब कर दो। और छुट्टी करवा लो। लेकिन एम्बुलेंस का पैसा एडवांस में हिसाब में शामिल होगा। मेरे छोटे भाई ने मेरी आर्थिक सहायता की और कुछ दिल्ली के दोस्तों ने।
मेने कहाँ - ठीक है।
फिर एक वार्ड बॉय साथ में आया बच्ची को लेकर वो जोर जोर से सांसे भर रही थी। मुँह पर ऑक्सीज़न का कैप लगा हुआ था और वो हाथ से रबर जैसे गुब्बारे को दवाकर साँस देता जा रहा था।
अब हम एम्बुलेंस में परिवार सहित थे। और रास्ता, सरकारी अस्पताल की तरफ था।
रात 11-12 बजे का समय -
हमारी एम्बुलेंस रात की सुनी सड़क पर स्पीड में दौड़ रही थी। मित्रो! आपको अवगत कराता हूँ, वास्तव में सायरन मेरे कानो में, आज भी गूंजता है उसका।
हम दौड़ते हुए कमला राजा हॉस्पिटल पहुंचे। मेने डॉक्यूमेंट की Formalties की और उन्होंने बच्चो के वार्ड का address बताया। और जो साथ आया था वो ICU वार्ड बॉय बच्ची मेरे हाथ में देकर एम्बुलेंस में वापस चला गया।
अब बच्ची मेरे हाथ में थी जो जोर जोर से सांसे भर रही थी।
मैं कमला राजा हॉस्पिटल के बच्चो के उस वार्ड के डॉक्टर साहब के पास गया उन्होंने बच्ची को हाथ में लिया और बच्ची के हाथ में इंजेक्शन के निशान और टैप देखकर बोले - लगता है प्राइवेट वालो ने चूसने के बाद यहाँ रेफेर किया है।
में चुपचाप बच्ची की हालत को देख रहा था।
तभी डॉक्टर साहब ने वार्ड बॉय को आवाज़ लगायी। और कुछ इशारा किया।
वो अपने हाथ में एक सिलेंडर टाइप का कुछ लाया जिसमे रबर की नली भी लगी थी।
डॉक्टर साहब ने उस नली को मेरी बेबी के मुँह में डाला काफी अंदर तक और प्रेशर से गले के अंदर तक का गन्दगी सा उस पाइप से खींच लिया। पाइप में लाल, सफ़ेद काफी पदार्थ निकला।
की तभी बच्ची रोने लगी। रोने की आवाज़ सबने 24 घंटे बाद सुनी।
अचानक केवल 2 मिनट में ऐसा क्या हुआ? मेरे घर वाले बच्ची की आवाज़ पहचानकर बेबी वार्ड की तरफ दौड़े।
तभी डॉक्टर साहब ने बच्ची के पीठ पर थपकी दी और बोले - लो हो गयी ठीक।
जाओ वार्ड में बेड नंबर लेकर इसकी मां को आराम करने दो, इसे हम यही रात में देखेंगे। जरुरत पड़ी तो दूध पिलाने के लिए आपको बुलाएंगे।
मुझे ऐसा लगा जैसे करोडो की लॉटरी लग गयी हो।
सोच रहा था अगर एम्बुलेंस वाले ने अपनी राय न दी होती तो ये सब नहीं होता। तब समझ आया की आपातकाल में मनुष्य को अपना विवेक नहीं खोना चाहिए। एम्बुलेंस का ड्राइवर जरुरी नहीं की ईमानदारी वाली राय ही दे रहा हो। शक जरूर करे और अपने विवेक से काम ले । इस अनुभव को इसीलिए आपके साथ शेयर कर रहा हूँ। ताकि ऐसा कुछ आपके साथ न हो जाए।
नोट - यहाँ में किसी पर कोई आरोप नहीं लगा रहा और न हीं किसी व्यवसाय या कंपनी का नाम ख़राब करने की कोशिश कर रहा हु। अगर फिर भी किसी को कोई आपत्ति है तो ये एक review मात्र है जो negative या Positive हो सकता है। किसी एक व्यक्ति के review से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए।
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