क्या शूद्र ईश्वर के पैरों से प्रकट हुए है?

Have Shudras emerged from the feet of God? - क्या शूद्र ईश्वर के पैरों से प्रकट हुए है? 3 वर्ण उच्च श्रेणी के है और 1 वर्ण (शूद्र ) निम्न जाति के है।

जब में इस प्रश्न का उत्तर इंटरनेट पर ढूढ़ रहा था तो  किसी किताब का एक अध्याय मिला।  वो अध्याय मध्य प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की वेबसाइट पर था। उसका लिंक में नीचे पोस्ट में दूंगा। और उस किताब के मुख्य पृष्ठ को भी ढूढ़ निकाला और उसका लिंक भी नीचे दूंगा। पहले उस किताब में जो लिखा है जिसे आज ज्यादातर समाचार पत्र, टीवी, नेता इत्यादि द्वारा समाज को बांटने में प्रयोग किया जाता है। उसे मैं अपने अनुसार डिकोड करने की कोशिश करूँगा। 

यह किताब मध्य प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अंतिम प्रतिवेदन (भाग 1 ) के अध्याय चार में पृष्ठ नंबर 17 पर जो लिखा है उसे पढ़े -

-------------------------   किताब के अनुसार -------------------

Have Shudras emerged from the feet of God? - क्या शूद्र ईश्वर के पैरों से प्रकट हुए है?

अर्थात

शूद्र अछूत होते है -

इसमें बताया गया है कि 3 वर्ण उच्च श्रेणी के है और 1 वर्ण (शूद्र ) निम्न जाति के है। शूद्र ) निम्न जाति को भी इन्होने 2 भागो में बाँट दिया सछूत  शूद्र  और अछूत शूद्र। 

अर्थात सछूत जिनके साथ छुआछूत नहीं और अछूत जिनके साथ छुआछूत थी।

ईश्वर के पैरो से शूद्र जन्मा है -

ऋग्वेद के एक श्लोक का उदाहरण देकर ये भी बताया गया कि शूद्र ईश्वर के पैरो से निकले। 

-------------------------    यहाँ तक  -------------------


                   मेरा विचार या विश्लेषण

-------------------------  मेरे अनुसार -------------------

क्या, शूद्र अछूत होते है?-

मुझे लगता है, किताब या ऊपर लिखी हुयी अवधारणा सत्य अवश्य प्रतीत हो रही है लेकिन सत्य नहीं हो सकती। इसे आप मेरी नज़र से देखे -

सबसे पहले शूद्र का अर्थ 

शूद्र  - अर्थात पैसे के बदले नौकरी करने वाला, यह नौकरी व्यक्ति के कौशल के अनुसार करता था और करता है ।  ज्यादा समझे, यहाँ से।  

अर्थ पढ़ लिया हो तो आता हूँ विश्लेषण पर। ऊपर किताब का अध्याय का सारांश कॉपी करके नीचे लिखा है सिर्फ आज के उपलक्ष्य  शब्द बदलकर इसे समझते है। 

इसमें बताया गया है कि 3 वर्ण उच्च श्रेणी के है 

  1. ब्राह्मण - पहले ऋषि मुनि - आज वैज्ञानिक 
  2. क्षत्रिय - पहले राजा, मंत्री, सैनिक - आज आर्मी, पुलिस, सेना 
  3. वैश्य - पहले व्यापारी - आज रेहड़ी वाले से लेकर बिज़नेसमैन तक (कोई भी अपना धंधा)

ऊपर किताब के अनुसार  1 वर्ण (शूद्र ) निम्न जाति के है। निम्न  जाति को  2 भागो में बाँट दिया सछूत  शूद्र  और अछूत शूद्र। 

     4.शूद्र - पैसे के बदले नौकरी करने वाला, Employee, कर्मचारी

अब भी अगर समझ में नहीं आया हो। तो में इसे थोड़ा और डिकोड करने की कोशिश करता हूँ।  और समझते है इस किताब में बताये गए  सछूत  कर्मचारी और अछूत कर्मचारी के बारे में। 

सछूत कर्मचारी -

जानवर या मानव के शव, मल, मूत्र को छूने के बाद या गटर साफ़ करने के बाद ( जब तक स्नानादि से शुध्द नहीं होता ) -

वो इसलिए की शास्त्रों में शरीर को सबसे अपवित्र माना गया है जो मल, मूत्र, विष्ठा, कफ, और पित्त का घर है। 

जैसे ही मल, मूत्र, विष्ठा, कफ, और पित्त शरीर से अलग होता है या आत्मा शरीर से अलग होती है वैसे ही यह शरीर घोर अपवित्र माना जाता है। 

ये शरीर किसी भी जाति, धर्म, जानवर, मनुष्य का हो सकता है। इसलिए आज भी लोग श्मशान घाट से आकर स्नान करते है, और घर में किसी चीज़ को छूते नहीं है। 

मान लीजिये

1. अगर आप शौचालय से निकले और हाथ पैर नहीं धोये। आपकी मां या पिता जी पूजा पाठ, सजदा, प्रार्थना, या नमाज़ पढ़ रहे है तो क्या आप उन्हें छू लेंगे? 

2. अगर वो आपको पवित्र जगह से दूर रहने का इशारा करते है तो क्या आपके साथ छुआछूत हो रही है?

लेकिन -

जैसे ही हम स्नान करके अपने बाह्य शरीर को पवित्र मान लेते है वैसे ही हम सभी को छूने लगते है और सभी हमें छूने लगते है। 

अब यही कर्मचारी ये कहे की - आपके और मेरे शरीर के अंदर ही मल, मूत्र, विष्ठा, कफ, और पित्त इत्यादि है, अगर आपका और मेरा शरीर ही अपवित्र है तो फिर मेरे काम से या मेरे छूने भर से इतनी छुआछूत क्यों?

तो इसका उत्तर विचार के रूप में मस्तिष्क में प्रकट होता है - कि आत्मा से पवित्र कुछ भी नहीं है। यह अन्तः शरीर तब तक ही पवित्र रहता है जब तक आत्मा का वास है लेकिन इस बाह्य शरीर को  व्यक्ति का मन, बुद्धि, ज्ञान और जल स्वच्छ रखता है। 

अब यही कर्मचारी ये कहे की - में तो जीवित हूँ। फिर कर्म करते समय मेरा बाह्य शरीर अछूत कैसे?

तो इसका उत्तर विचार के रूप में मस्तिष्क में प्रकट होता है कि - यह किसी जीव या ईश्वर के प्रति नैतिक सम्मान या नैतिक शिष्टाचार मात्र ही है। कि - 

  • आप मल, मूत्र त्याग  के बाद या शौचालय से निकलने के बाद आप किसी धर्म पुस्तक, मंदिर, जगह, पूजा स्थल को सीधे छू सकते है या नहीं। 
  • गंदे हाथो से से आप खाना बना या खा सकते है या नहीं। 
  • खाना खाने से पहले हाथ या पैर धोना चाहिए की नहीं। 
नहा धोकर पवित्र होकर कोई भी ईश्वर की भक्ति कर सकता है अर्थात शरीर में जब तक आत्मा है तब तक पूर्ण रूप से अशुद्ध नहीं कहा जा सकता। क्युकी उसमे परम पवित्र ब्रह्म विराजमान है। तत्त्वं असि ll 

 अछूत कर्मचारी -

ये ऐसे अन्य सभी कर्मचारी है जो मल, मूत्र, विष्ठा, कफ, और पित्त आदि की  सफाई नहीं करते।  


क्या हुआ समझ नहीं आया?  -

मैं बस इतना कहना चाहता हूँ -

  1. ब्राह्मण अर्थात सत्य खोजने वाला वैज्ञानिक 
  2. क्षत्रिय अर्थात बॉर्डर पर टिका हुआ सैनिक या कर्नल 
  3. वैश्य अर्थात अपना स्वयं का व्यापार करने वाला 
  4. शूद्र अर्थात पैसे के बदले अपने कौशल के हिसाब से नौकरी करने वाले 

गलत धारणा विदेशी लोगो ने भारतीयों के मस्तिष्क में अपने स्वार्थ को साधने, मंदिर लूटने, बलात्कार करने, सवा सौ मन जनेऊ जलाकर ब्राह्मणों के धर्म परिवर्तन करने के लिए


ये चारो ईश्वर के अंग से प्रकट हुए है और ये चारो श्रेय अर्थात श्रेष्ठ है। किसी एक को भी हेय से देखना ईश्वर का अपमान है, गलत धारणा विदेशी लोगो ने भारतीयों के मस्तिष्क में अपने स्वार्थ को साधने, मंदिर लूटने, बलात्कार करने, सवा सौ मन जनेऊ जलाकर ब्राह्मणों या जनेऊ धारी हिन्दुओं के धर्म परिवर्तन करने के लिए भरी। ताकि वैज्ञानिक मस्तिष्क उनके पाले में आ जाए।

आज अगर कोई गटर साफ़ करने का काम करने वाला व्यक्ति नहा धोकर ईश्वर को भोग लगाकर भोजन ग्रहण करता है तो वो श्रेष्ठ है। भगवान् उसके पास वैसे ही रहते है जैसे शालिग्राम भगवान एक कसाई के तराजू में अपने भक्त के पास रहते थे। जो मांस का व्यापार करता था। 

बाकी का भ्रम उन लोगो ने फैलाया जो समाज के मुखिया बनना चाहते थे या चाहते है जो बिना मेहनत किये राजा जैसी ज़िंदगी जीना चाहते है, आपके धर्म और आपका ईश्वर से कनेक्शन तोड़कर आप पर राज़ करना चाहते है।


इस किताब के अध्याय में बहुत से श्लोक जिन्हे ऋग्वेद, मनुस्मृति और अन्य शास्त्रों से लिया गया, में उन सबको अपने विचार या आभास के अनुसार डिकोड करने की कोशिश करूँगा। 

कमेंट में मार्गदर्शन करते रहे।


Link of Book -

1. https://bccomm.mp.gov.in

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क्या शूद्र ईश्वर के पैरों से प्रकट हुए है?
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