राष्ट्रवाद का अर्थ क्या है? राष्ट्र+वाद को समझे। understand nationalism राष्ट्रवाद का अर्थ समझने के लिए हमें राष्ट्र और वाद दोनों का अर्थ समझना होगा।
राष्ट्रवाद का अर्थ समझने के लिए हमें राष्ट्र और वाद दोनों का अर्थ समझना होगा।
राष्ट्र का अर्थ -
वह भूखंड जहाँ संस्कृति, सभ्यता, परंपरा, भाषाएँ , इतिहास निवास करती है। और वे संविधान नामक वृक्ष की छाया में फलती फूलती है। वह राष्ट्र कहलाता है।
आज हम उस वृक्ष को बाबा साहब द्वारा रचित भारत के सविंधान के रूप में समझ सकते है। सविंधान की शक्ति से ही भारत के भूखंड की संस्कृति, सभ्यता, परंपरा, भाषाएँ, और इतिहास सुरक्षित है। इस संविधान की शक्ति We अर्थात भारत के लोग हैं।
सविंधान के कारण ही सभी अलग अलग भाषाएँ, पहनावा, रहन सहन होने के बाद भी वे एक राष्ट्र है।
आचार्य चाणक्य के अनुसार -
आचार्य चाणक्य Nation (राष्ट्र) शब्द को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि राष्ट्र केवल किसी भूखंड मात्र को नहीं कहते, जिसमें नदी, पर्वत विविध प्रकार की वनस्पतियां या पशु-पक्षी हों। अपितु राष्ट्र शब्द से संस्कृति, सभ्यता, परंपरा, भाषा, इतिहास इन पांचों विषयों का बोध होता है। यह मिलकर जिस भूखंड के अवयव बनते हैं, वही राष्ट्र कहलाता है।
चाणक्य का चिंतन था कि देश में जन्मे प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पण का भाव रखना ही सच्ची राष्ट्र सेवा है।
वाद का अर्थ -
आपने वाद और विवाद तो सुना ही होगा। तो इसे बिलकुल आसानी से ऐसे समझ सकते है।
वाद - अर्थात सहमति, समर्पण या सकारात्मक भाव ।
यह राष्ट्र या संविधान के प्रति निष्ठा, उसकी प्रगति और उसके प्रति सभी नियम आदर्शों को बनाए रखने की सकारात्मक भावना जो सभी स्वार्थ से ऊपर होती है।
वाद को समझने के साथ साथ विवाद को भी समझ लेते है।
विवाद - अर्थात असहमति या नकारात्मक भाव ।
ऐसा मनुष्य अपने धर्म, जाति, या किसी भौतिक स्वार्थ को सबसे ऊपर रखकर विवाद करता है।
यहाँ
- भौतिक स्वार्थ (जनता द्वारा) - अर्थात अपने स्वार्थ के लिए राष्ट्र की सम्पत्ति को जलाना
- भौतिक स्वार्थ (नेताओं द्वारा) - अर्थात स्वार्थ के लिए देश के खजाने को जनता में लुटाना और खुद लूटना
- धर्म, या जातिगत स्वार्थ - अर्थात धार्मिक स्वार्थ के अंतर्गत अपने ही राष्ट्र का किसी प्रतियोगिता मात्र हार होने पर ही खुश होना या पटाखे चलाना, ऐसा बोर्ड या कोर्ट जिसमे सविंधान भी हस्तक्षेप न कर सके या किसी एक धर्म को विशेष अधिकार या छूट देना।
अतः राष्ट्रवाद एक ऐसा भावना है जो किसी भौगोलिक, सास्कृतिक या सामाजिक परिवेश में रहनेवाले लोगों के बीच एकता को स्थापित करता है। और इस राष्ट्रवाद को संविधान नाम के धागे से बंधा हुआ है।
सनातन धर्म के अनुसार राष्ट्रवाद -
सनातन धर्म का अर्थ मनुष्य धर्म Humanity है , और मनुष्य धर्म Humanity का अर्थ मनुष्य के द्वारा किये जाने वाले निस्वार्थ कर्तव्य है। लेकिन निस्वार्थ कर्तव्य के साथ साथ आत्मरक्षा हमेशा ध्यान रखना चाहिए।
आप (मनुष्य ) जिस रूप, जगह, पदवी पर है वहां के निस्वार्थ कर्तव्यों का पालन करना ही सनातन धर्म है। और जब आप कोई धर्म (निस्वार्थ कर्तव्यों का समूह) राष्ट्र के लिए करते है तो वह राष्ट्रधर्म कहलाता है।
राष्ट्रधर्म के अंतर्गत आप ऐसे समझ सकते है कि - सविधान नाम के वृक्ष के नीचे , उस राष्ट्र नामक भूखंड पर खड़े हुए सभी धर्म व् जाति के मनुष्यो लिए किये गए समानरूप से किये गए कर्तव्यों को राष्ट्रधर्म कहते है जहाँ तुष्टिकरण अधर्म होता है।
इसलिए सनातन धर्म में बार बार यह बोला जाता है कि -
धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों मे सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो।
इसलिए
राष्ट्र अर्थात वह भूखंड जिस पर संस्कृति, सभ्यता, परंपरा, भाषाएँ , इतिहास जन्मे हो।
वाद अर्थात उसी राष्ट्र के प्रति बिना किसी विवाद, समर्पण या सकारात्मक भाव
आगे आप जानेगे - तो अतिराष्ट्रवाद क्या है?
नोट - राष्ट्रवाद के अर्थ को कुछ स्वार्थी बुद्धीजवियो ने अलग ही रूप में दिया है। जिसमे वो विदेशी विचारको के कथन, और विदेशी आकर्मंकारियो का डर शामिल करते है। जैसे कि वे हिटलर और माओ को भी प्रबल राष्ट्रवादी बताते है। वे राष्ट्रवादी नहीं बल्कि आक्रमणकारी थे जो किसी न किसी स्वार्थ के गुलाम थे, अर्थात अधर्मी थे।
डिस्क्लेमर - यह लेखक के स्वयं के सकारात्मक विचार है। क्युकी मेरे लिए देश से बड़ा न धर्म है और न जाति। फिर स्वार्थ तो बिल्कुल नहीं।
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