चंद्रमा को पृथ्वी के चारों ओर एक पूर्ण पथ पूरा करने में लगभग 27.3 दिनों का समय लगता है, जिसे हम चंद्रिमा मास (Lunar Month) के रूप में जानते हैं।
क्या आपको पता है कि चन्द्रमा का एक दिन धरती के एक दिन के बराबर नहीं होता है. बल्कि चन्द्रमा का एक दिन धरती के लगभग 14 दिनो के बराबर होता है।
One day of the Moon is equal to how many days of the Earth?
आधुनिक विज्ञान के अनुसार -
चंद्रमा को पृथ्वी के चारों ओर एक पूर्ण पथ पूरा करने में लगभग 27.3 दिनों का समय लगता है, जिसे हम चंद्रिमा मास (Lunar Month) के रूप में जानते हैं।
तो क्या चंद्रमा भी अपनी धुरी पर घूमता है?
नहीं, चंद्रमा अपनी धुरी पर नहीं घूमता है। क्युकी चंद्रमा एक स्वयंचलित ग्रह नहीं है, जैसे पृथ्वी या अन्य ग्रह होते हैं जो खुद के अपने धुरी (एक्सिस) के चारों ओर घूमते हैं।
चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर एक नियमित पथ पर घूमता है, जिसे चंद्रमा की कक्षा भी कहा जाता है।
14 दिन का एक दिन तो चन्द्रमा पर दिन अर्थात सूर्य का (कम ज्यादा) प्रकाश रहता है। इसलिए पृथ्वी के कई दिनों के बराबर तो वहां की प्रातःकाल, दोपहर और संध्या होती होगी।
बाकि के 14 दिन की एक रात होती है जिसकी प्रातःकाल और संध्या भी पृथ्वी के कई दिनों या रात के बराबर होती होगी।
जबकि पृथ्वी पर 12 घंटे का दिन होता है और 12 घंटे की रात होती है इसलिए पृथ्वी अपनी धुरी का चक्कर 24 घंटे में पूरा कर लेती है। तो पृथ्वी के दिन रात इसके धुरी पर घूमने के कारण होते है सूर्य के चक्कर लगाने के कारण नहीं।
अर्थात चन्द्रमा पर इतने लम्बे दिन और रात इसका अपनी धुरी पर न घूमने के कारण, बल्कि पृथ्वी के चक्कर लगाने के कारण होता है।
सनातन धर्म के अनुसार -
पृथ्वी पर परिक्रमा करते करते चन्द्रमा इस गति से चलता है कि 14 दिन चन्द्रमा का एक हिस्सा सूर्य के सामने होता है और वही दूसरा हिस्सा 14 दिन पीछे, जिसमे । इस प्रकार से चंद्रदेव पृथ्वी की परिक्रमा लगभग 28 दिन में पूरी करते है.
तो चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है, और पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है, अर्थात इस ब्राह्मण में सब किसी न किसी की परिक्रमा कर रहे है।
ब्राह्मण के उन्ही नियमों को मानते हुए सनातन धर्म के मंदिरो में भक्त भगवान् की उसी प्रकार की परिक्रमा करते है।
तो चन्द्रमा इसी प्रकार की चाल से 14-14 अलग अलग कलाओं में पृथ्वी के लोगो को दर्शन देते है। जिसका कारण प्रजापति के द्वारा दिया गया श्राप है। इन्हे इस प्रकार समझ सकते है।
अर्थात -
शुक्ल पक्ष = 1-14 दिन
पूर्णिमा = पन्द्रवा दिन
कृष्ण पक्ष = 16-29 दिन तक
अमावश = 30वा दिन
अतः महीना = 30 दिन
सनातन धर्म के ज्योतिष शास्त्र में इसी प्रकार से महीने के दिनों की गणना ईसा पूर्व से की जाती रही है, यह गणना शुक्ल पक्ष, कृष्ण पक्ष, पूर्णिमा और अमावश की तिथियों की गिनती के अनुसार से ही चलता है।
14-14 दोनों कलाओं के नाम -
शुक्लपक्ष -
यह समय अमावस्या से पूर्णिमा तक का समय शुक्लपक्ष कहलाता है। 15वें दिन पूर्णिमा आती है, इसलिए उस दिन चन्द्रमा पृथ्वी के लोगो को पूरा और तेज़ दिखाई देता है। प्रकाश और सत्य के सात्विक साधक उस दिन बड़ी श्रद्धा के साथ सात्विक जीवन जीते है, व्रत पूजा करते है , और शुभ कार्यो को करने में ज्यादा विश्वास रखते है।
उस दिन सात्विक प्रवृति के लोग भगवान् से सिद्दी और भक्ति प्राप्त करने के लिए व्रत, उपासना भी रहते है। पृथ्वी के रात 12 से लेकर दोपहर 12 बजे तक का समय भगवान् के पूजन के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। जिसमे 12 से 1 बजे के बीच का समय, पूर्णिमा का शिखर काल होता है। इस समय हवन यज्ञ, कीर्तन, शास्त्रपाठ भी किये जाते है।
कृष्णपक्ष -
पूर्णिमा से अमावस्या तक बीच के दिनों को कृष्णपक्ष कहा जाता है। इसकी कला के अंतिम दिन अमावश के नाम से जाना जाता है पृथ्वी के अमावश का वह दिन और रात का समय नकात्मक शक्तियों के लिए जाने जाते है। यह तंत्र साधको, अंधकार, नकारात्मक शक्ति के लिए अमावश का बहुत महत्त्व होता है। तंत्र साधक अमावश की प्रतीक्षा में रहते है।
इसलिए तांत्रिक भी अमावश को पृथ्वी के दोपहर 12 से लेकर रात 12 बजे तक साधना पर जोर लगाते है। जिसमे 12 से 1 बजे के बीच का समय, अमावश का शिखर काल होता है।
इस सकरात्मक और नकारात्मक ऊर्जा के घटने और बढ़ने के कारण पृथ्वी के समुन्द्र जल में ज्वार और भाटा उत्त्पन होता है। जिसे आज का विज्ञान चुंबकीय क्षेत्र के नाम से समझता है।
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