श्री रामानंद सागर को छोड़कर, ज्यादातर बहरूपियों ने कलात्मक और रचनत्मक रूप से शास्त्र को छिन्न-भिन्न करने का काम किया है, Why are mythological films or
Pauranik Films or TV Serials - अगर आप पौराणिक फिल्में या सीरियल देखने वाले viewer है या Producer (निर्माता), तो यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण हो सकती है। यहाँ मुझे सबका तो नहीं पता लेकिन What I Think अपने ब्लॉग सेक्शन के द्वारा ये बता सकता हूँ कि वास्तव में What I Think -
मुझे जब भी समय मिलता है तो मैं श्री रामानंद सागर की रामायण, श्री कृष्ण, जय गंगा मैया, और अन्य पुरानी निर्मित पौराणिक फिल्में या सीरियल देखना पसंद करता हूँ।
लेकिन अभी हाल के कुछ सालो में निर्मित पौराणिक फिल्में या सीरियल न तो मैं देखता हूँ और न मेरे परिवार में किसी कोई कोई रूचि है उन्हें देखने में।
ऐसा नहीं है की पुराने सभी सीरियल या फिल्मे अच्छे प्रोडक्शन का हिस्सा थे, पहले भी कुछ लोगो ने घृणित कार्य किये है। जैसे की xxxx खान द्वारा बनाया गया "जय हनुमान " टीवी सीरियल जिसमे उन्होंने कलाकारों के वस्त्रों के द्वारा अपने दुराचरण का प्रदर्शन किया था । खैर ऐसे लोगो की लिस्ट पड़ी है जिन्होंने सनातन धर्म का परिहास उड़ा कर भी पैसे कमाए है। खैर, अपने कारण पर आता हूँ।
तो आखिर क्या कारण है कि आज कल के पौराणिक टीवी धारावाहिक और फिल्मे नहीं देखता हूँ?
निर्माता या प्रोडूसर का लालच से ग्रसित होना -
निर्माता या प्रोडूसर का उदेश्य पौराणिक TV Serials और पौराणिक फिल्मे बनाने के पीछे का उदेश्य सनातन ज्ञान का प्रचार प्रसार नहीं बल्कि उससे पैसे कमाने का होता है। इसलिए वो उसमे मनोरंजन, कलात्मक और रचनात्मकता के नाम पर देवताओ और राक्षसों दोनों के लिए अभिनय करते है जिससे सभी लोग देखे और कमाई ज्यादा हो सके।
** अगर मनुष्यो की मानसकिता को दो भागो में विभाजित करे - नास्तिक और आस्तिक, सात्विक और तामसिक, सत्य और असत्य, धर्म और अधर्मी, ठीक वैसे ही देवता और राक्षस।
निर्माता या प्रोडूसर का काम से ग्रसित होना -
निर्माता या प्रोडूसर या इनमे पैसे लगाने वाले जो अपने आप को बड़े घर के लोग बोलते है ये हमेशा काम (सेक्सयूअल ) से ग्रसित रहते है, और सारे लोगो को उसी रूप में देखते है। ये ऐसे कलाकार चुनते है जो वे भी उनकी श्रेणी के होते है। फिर वे ऐसे वस्त्र पहनते है जिनकी शास्त्रों में कोई व्याख्या नहीं है।
शास्त्रों में स्त्री और पुरुष के रूप और चरित्र का वखान अवश्य मिलता है। लेकिन ये अज्ञानी लोग उसे कम वस्त्रों में बदल देते है। क्युकी इनकी कामुक दृष्टि कलाकारों को अभिनय करते समय अपने नैन सुख लेते-लेते राक्षसों की तरह लार टपकाते रहते है। कलाकार जो इनकी श्रेणी के नहीं होते वे भी अर्थ (धन) की मजबूरी में इनके साथ काम करने से मना नहीं कर पाते, या फिर वे विधर्मी कलाकारों का अपनी फिल्म या सीरियल में भर्ती करते है, वे किसी भी प्रकार के वस्त्र पहनने से मना नहीं करते है बल्कि वे खुद इसे प्रोत्साहित करते है।
निर्माता या प्रोडूसर का अज्ञानता से ग्रसित होना -
निर्माता या प्रोडूसर कभी भी सनातन धर्म के किसी शास्त्र को नहीं पढ़ते है, अर्थात स्वयं अज्ञानी होते है। इनको चाहिए कि वे पहले सभी 108 उपनिषद पढ़े (ज्यादा समय नहीं लगेगा), उसके बाद पुराण, अगर ज्यादा मुमुक्षत्व का भाव है तो वेद पढ़ सकते है लेकिन वेद बिना किसी संत परम्परा गुरु के बिना समझना बहुत मुश्किल हो सकता है। ।
साथ ही साथ किसी ऋषि, साधु परंपरा के गुरु की शरण में जाकर उसके भावों के अनुरूप टीवी सीरियल या फिल्म का निर्माण करना चाहिए। लेकिन अज्ञानता के कारण सही गुरु का चुनाव नहीं कर पाते और अपनी कुबुद्दि से बहरूपिये से मार्गदर्शन लेने लगते है।
ज्ञानता से ग्रसित ये मुर्ख निर्माता या प्रोडूसर शास्त्रों का ज्ञान का सबको नहीं समझा पाते क्यूंकि उन्हें खुद उसके बारे में कुछ पता नहीं होता। केवल उसमे दी गयी कहानी को अपने ही रंग रूप में दिखाते है, अर्थात दुष्प्रचार करते है। यह घोर राक्षसी प्रवृति है।
गलत कलाकारों का चुनाव -
निर्माता या प्रोडूसर द्वारा हमेशा ही गलत, विधर्मी, अधर्मी कलाकारों का चुनाव किया जाता है जिन्हे बॉलीवुड इंडस्ट्री में किसी भी हाल में चाहे वस्त्र हरण करवाकर ही सही, उन्हें पैसा कमाना होता है। वे लोग शास्त्रों का अभिनय करते करते इंस्टाग्राम या अन्य सोशल मीडिया पर अपने वास्तविक चरित्र का प्रदर्शन करते है। अगर कुछ अज्ञानी इनके रंग-रूप के बहकावे में आ भी जाते है अंततः उन्हें उनकी अज्ञानता का पुरस्कार मिलता है और इनके वास्तविक चरित्र के प्रदर्शन से उनकी आस्था को ठेस पहुँचती है।
** जैसे कि श्रीमान अरुण गोविल जी का स्वागत आज भी लोग उन्हें राम समझकर करने लगते है, और यह श्रीमान अरुण गोविल जी के चरित्र की श्रेष्ठता है । उनके लिए यह पृथ्वी ही स्वर्ग के समान है जिसमे सभी सनातनी स्त्री पुरुष इतना सम्मान देते है, उन्होंने पृथ्वी पर ही देवताओ के समान सम्मान को प्राप्त किया है।
निर्माता या प्रोडूसर का अहंकार में ग्रसित होना -
पौराणिक टीवी सीरियल्स या धारावाहिक और पौराणिक फिल्मे बनाने वाले ज्यादातर निर्माता या प्रोडूसर मुझे अहंकारी प्रतीत होते है। क्युकी जब भी इनके द्वारा बनायी गयी खिचड़ी को देखने की कोशिश करता हूँ तो पता चलता है कहानी में काफी तोड़ मरोड़, उसके वास्तविक सार और ज्ञान से कोसो दूर प्रतीत होती है, जिसे देखकर मैं क्या मेरे बच्चे भी कहते है पापा क्या लगा दिया ये लोग पता नहीं कुछ का कुछ बताते रहते है। निर्माता या प्रोडूसर अपने अहंकार में अपने आप को व्यास जी समझने लगता है। और पौराणिक टीवी सीरियल्स या धारावाहिक और पौराणिक मूवी के आगे एक डिस्क्लेमर लगा कर ये बहरूपिया अपने आप आप बचा लेता है। और खिचड़ी को ऐसे रखता है जैसे पता नहीं कितना बड़ा सम्माननीय और सराहनीय कार्य किया है।
ये लोग इतने नीचे गिर गए कि सनातन धर्म के दुष्प्रचार से पैसे कमाने लगे है। जल्दी ही इनके बच्चे या इनकी पीढियां भगवद कृपा से दूर होकर अधर्मी बन जाए तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
खैर, सबके अपने अपने विचार। इसलिए मैं ऐसी किसी भी पौराणिक टीवी सीरियल और पौराणिक फिल्म को देखना पसंद नहीं करता जो किसी भी धर्मी या अधर्मी माता या बहन को गलत वस्त्र धारण करवाकर, उनसे गलत ज्ञान के माध्यम से गलत अभिनय करवाया जा रहा हो।
इसलिए में सभी सनातनियो से प्रार्थना करूँगा, अगर सनातन धर्म का ज्ञान चाहिए तो यूट्यूब पर लोगो ने उपनिषद पढ़ कर डाले है, वेद पढ़कर डाले है, पुराण पढ़कर डाले है, उन्हें अकेले में सुने, अर्थात अगर आप मुमुक्षु है तो शास्त्र को यथारूपेण जानना चाहिए।
श्री रामानंद सागर को छोड़कर, ज्यादातर बहरूपियों ने कलात्मक और रचनत्मक रूप से शास्त्र को छिन्न-भिन्न करने का काम किया है। जबकि श्री रामानंद सागर जी ने ज्ञान को एक धागे में पिरोने का काम किया है, जो समझने वाले है वो समझते है इसलिए उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखते है।
इसलिए शास्त्रों को यथारूपेण पढ़कर, सुनकर और समझकर उन बहरूपियों को पहचाने।
इसलिए अपना क्रम इस प्रकार बनाये -
- सबसे पहले शास्त्रों को गुरु रूप में माने ।
- फिर उनका अध्ययन, या श्रवण करे
- फिर सुने हुए भाग को सोने से पहले, चिंतन और मनन करे।
अगर आप भगवद सत्ता में विश्वास करते है तोअब आप शास्त्रों के विमुख कोई कार्य नहीं करेंगे, ये बात आप कही लिखकर रख लो ।
लेकिन अगर लालच और स्वार्थ के लिए ये सब कर रहे तो फिर आप भी कालनेमि बहरूपिये ही है, पीढ़ी का पतन निश्चित है, इसे भी कही लिखकर रख सकते है।
प्रभु श्री राम के शरणागतो को जय श्री राम, जय श्री हनुमान। मेरे भावनात्मक विचार कैसे लगे, कमेंट अवश्य करें, अगर मेरी जानकारी आपको पसंद आती है तो मुझे फॉलो करे, और पोस्ट के अपडेट सबसे पहले पाए।
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