सनातन धर्म के अनुसार स्त्रियों बेटा या बेटी को धर्म परिवर्तन भूलकर भी नहीं करना चाहिए। वे अनंत वर्षो तक भटकते रहते है।
आज कल प्यार के लिए धर्म परिवर्तन करना कुछ पढ़े लिखे हिंदुओ में चलन सा हो गया है। तो इस बात पर मैं अर्थात सिर्फ मैं क्या सोचता हूँ इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से कुछ ऐसी जानकारी दूंगा जो आपको शायद ही पता हो।
सनातन धर्म में मैंने जाना जैसे कि श्रीमद भगवद गीता हो या कोई अन्य पुराणशास्त्र। हर कोई बस यही कहता है। कि स्त्री का धर्म परिवर्तन नहीं होना चाहिए, क्युकी ऐसा होने पर इनसे वर्णसंकर संतान पैदा होती है।
इसे किसी जानवर के उदाहरण मात्र से समझे तो -
गधा और घोड़ी से सिर्फ खच्चर पैदा हो सकता है, घोडा नहीं।
हर सनातनी व्यक्ति किसी न किसी कुल से सम्बन्ध अवश्य रखता है। और उसकी कुलदेवी और कुलदेवता भी होते है। धर्म-परिवर्तन करने से हर सनातनी बेटी या बेटा अपने कुलदेवी और कुलदेवता का साथ खो देती है। ऐसे माता पिता भी अपने कुलदेवी और कुलदेवता के श्राप के भागी बनते है। क्युकी वह अपनी पीढ़ी को बचाने का संस्कार नहीं दे पाया।
हर किसी व्यक्ति के कुलदेवी और कुलदेवता चाहते है कि उनका कुल तब तक चले, जब तक सृष्टि है, क्युकी अगर कुल के वंशस ही नहीं रहेंगे तो उन्हें भोग, भेट कौन देगा। धर्म परिवर्तन करने की स्तिथि में वे अपने ही कुल के उन माता-पिता और बच्चो को श्राप देने पर वाधित हो जाते है। जिसे कही कही पितरदोष भी कहते है।
वर्ण-संकर जानवरों की संतान कभी भी विश्वसनीय नहीं होती, ऐसा मैंने बढे बूढ़े लोगो से सुन रखा है। और जीवन का अनुभव भी है। सही बोलू तो अपने जीवन में अभी तक जितने भी जानवर मिले ज्यादातर दोगले अर्थात खच्चर ही थे। ये मेरा स्वयं का अनुभव है।
ऐसे माता-पिता समधि होने के अधिकार से वंचित रह जाते है, समथि अर्थात जिन दोनों माता पिता के पास समान धन हो। इसलिए जाति और कुल देखकर ही विवाह सम्बन्ध किये जाते है। अगर समान धन न हुआ तो जैसा कुल, वैसे उनके कुल के देवता होते है।
जैसे कि जिसके देवता पर तामसिक भोग या भेट चढ़ती है तो उनके कुल के लोग भी तामसिक ही ज्यादा पाए जाते है।
ऐसे माता-पिता कन्यादान के अधिकार से भी वंचित रह जाते है, कन्यादान के पुण्य से ये माता पिता कभी न कभी अवश्य भगवान् को प्राप्त होते है, इन्हे हमेशा अँधेरे में भटकना नहीं पड़ता है। अर्थात इनकी सुबह कभी न कभी अवश्य होती है। लेकिन कन्यादान न कर पाने से ये हमेशा से ब्रह्माण्ड के अंधकार में अँधेरी शक्तियों के नौकर बनकर रह जाते है। अर्थात जब भी चन्द्रमा का भाग सबसे ज्यादा काला होगा तभी खुश होंगे, इन आत्माओ की अमावश कभी खत्म नहीं होती, और यही इन्हे प्रिय होती है, शक्ति भी इन्हे यही से मिलती है ।
अब ये जानकारी होने के बाद भी अगर कोई बेटी या बेटा न माने, तो स्वयं सोचिये की पैसा कमाने का चक्कर में क्या खोया और पाया। एक भगीरथ थे, जो अपने पित्तरों को तारने के लिए तपस्या की थी। एक आज कल की संताने है जो प्यार के लिए अपने माता पिता, पित्तर सबको एक झटके में अमावश की रात के चाकर बना देते है।
हालाँकि प्यार का प्रेम से कोई सम्बन्ध नहीं, इसे किसी और और दिन बतायूंगा। :-)
ध्यान रखे - धन, पैसा रुपया साधन है, साध्य नहीं। आपको साधक बनकर साधन को नहीं बल्कि स्वयं को साधना चाहिए।
जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी।
दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा, स्वधा नमोऽस्तुते॥
जय श्री हनुमान, जयश्रीराम, हर हर महादेव
डिस्क्लेमर - यह ब्लॉग पोस्ट मेरी मानसिक अवसाद का एक कारण भी हो सकती है, इसका किसी जाति, धर्म, व्यक्ति, विशेष से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह जानकरी एक कुए के मेढक की भांति मैं क्या सोचता हूँ, अभी तक के जीवन में क्या सीखा है, क्या जाना है। सिर्फ उसे बताया है आप तर्कशील, बुद्धिमानी है, मेरे व्यक्तिगत फेंटसी प्रतीत होने वाली इस जानकारी पर भरोसा अगर न करे तो कोई बात नहीं। ऐसी ही चित्र विचित्र जानकारी के लिए याद रखे मेरा ब्लॉग - www.PradeepTomar.com और क्लिक करे - What I Think.
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