आप ईश्वर के भेजे हुए दूत अर्थात सन्देश वाहक है, जिसका कार्य शैतानो से बचते हुए, ईश्वर के सन्देश को स्वयं पालन करना - जीवन क्या है? What is life?
क्या आपने कभी सोचा है कि जीवन क्या है? अगर सोचा है तो ये पोस्ट आपके लिए ही है, मैं क्या सोचता हूँ उसे आपको अवश्य जानना चाहिए।
आजकल के दृष्टिकोण के हिसाब ज्यादातर लोग यही कहेंगे कि इसका उत्तर एक ही नहीं होता, क्योंकि हर व्यक्ति अपने अनुभव, भावनाओं और दृष्टिकोण से इसे अलग-अलग रूप में समझता है। लेकिन अगर यह कहा जाए कि सबके लिए एक ही होता है बस मार्ग अलग अलग है तो वही बहुत बड़ा दृष्टिकोण सिमट कर छोटा रह जायेगा और आसानी से समझ में आ जायेगा कि जीवन क्या है।
आजकल के दृष्टिकोण के हिसाब -
सबसे पहले आजकल के दृष्टिकोण के हिसाब से जानते है ताकि हम अंत में आसानी से किसी निष्कर्ष पर पहुंच सके।
जन्म से मृत्यु तक की कालावधि जीवन है?-
हम जीवन को जन्म से मृत्यु तक की कालावधि को भी जीवन कहेंगे तो गलत नहीं होगा। लेकिन ये आधा सत्य है।
अनुभव से सीखना और सीखाना जीवन है? -
जीवन एक भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक अनुभवों का एक संगम है जहाँ हम सीखते हैं, विकसित होते हैं, और प्रगति करते हैं। लेकिन ये भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक अनुभव हमें अपने पूर्वजों से प्राप्त होते है, और स्वयं पूर्वज बनकर आने वाली पीढ़ी को देना होता है। जिसे ज्ञान या विज्ञान भी कहते है। यह भी जीवन है, लेकिन ये आधा सत्य है।
उद्देश्य को खोजना जीवन है? -
कई दर्शन और धर्मों के अनुसार, जीवन का उद्देश्य आत्म-ज्ञान प्राप्त करना, नैतिक रूप से जीना, या दुनिया में कुछ सकारात्मक योगदान देना हो सकता है। लेकिन ये आधा सत्य है।
सुख की खोज में दौड़ना ही जीवन है?
सुख बिल्कुल वैसे है जैसे कस्तूरी मृग की नाभि में होता है, लेकिन वह उसकी सुगंध को खोजने के लिए दौड़ता रहता है। मनुष्य उस चार कदम आगे है क्युकी जब मनुष्य सुख प्राप्त करने में असमर्थ रहता है तो आत्महत्या करने को भी सुख ढूढ़ लेता है। तो क्या सुख सुविधा प्राप्त करना ही जीवन है? लेकिन ये भी आधा सत्य है।
तो फिर जीवन है क्या ?
मैं क्या सोचता हूँ उसे बताता हूँ। -
अगर आप किसी धर्म को मानते है तो उनके लिए जीवन क्या है?
आप ईश्वर के भेजे हुए दूत अर्थात सन्देश वाहक है, जिसका कार्य शैतानो से बचते हुए, ईश्वर के सन्देश को स्वयं पालन करना और उसकी जानकारी अन्य मनुष्यों को देना है ताकि वे और आप अपना कर्तव्य का पालन कर सके।
आप स्वयं भगवान् है, ब्रह्म है, जिनका कार्य सभी सृष्टियों का पालन, पोषण करना है, जिसमे धर्मी और अधर्मी (जिन्हे ऊपर शैतान) सभी सम्मिलित है।
अब आप कहेंगे कि आप धर्मी का पालन तो कर सकते है, लेकिन अधर्मीयों का नाश या शैतानों को समाप्त करेंगे, बिल्कुल सही सोचा आपने, लेकिन आधा सत्य समझकर।
क्युकी भगवान् किसी भी अधर्मी का नाश करने से पहले उन्हें अपनी शरण में आने के सभी अवसर देते है। इसलिए उन्हें शरणागत और भक्त वत्सल कहा है। करुणा के सागर कहा जाता है।
आप स्वयं सोचिये अगर आप करुणा के सागर, शरणागत वत्सल है और आपका एक पुत्र धर्मी और दूसरा अधर्मी है तो आप सत्य का पक्ष लेकर दोनों का पालन करेंगे।
तो फिर ईश्वर के भेजे हुए दूत होकर, या ईश्वर को जानने वाले सतगुरु होकर या स्वयं ब्रह्मांश होने पर, केवल आधा सत्य समझकर अधर्मीयों का नाश या शैतानों को समाप्त करना ही जीवन है?
नहीं, बल्कि स्वयं की पहचान होना और उसी पहचान के अनुसार जीवन व्यतीत करना ही जीवन है, यही सनातन सत्य है, और सत्य के साथ पालन करना ही धर्म है। अधर्मियों को उचित समय पर दण्डित करना भी सत्य धर्म है। जब में धर्मियों के जीवन में व्यवधान पैदा करने लगे।
स्वयं को कैसे पहचाने ?
अब आपको महा वाक्यों को जानने, समझने और उसके पालन करने की आवश्यकता होगी। वे महा वाक्य इस प्रकार है।
अहम् ब्रह्मास्मि - अर्थात मैं ब्रह्म हूँ।
तत्त्वं असि - अर्थात तुम ब्रह्म हो।
नेति नेति - ये भी नहीं, वो भी नहीं।
लेकिन अगर आप किसी धर्म को नहीं मानते है तो उनके लिए जीवन क्या है?
इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने के लिए आपको ऊपर दिए गए - आजकल के दृष्टिकोण के हिसाब से उत्तर में से किसी भी बिंदु को पढ़ ले, और उसे उसका उत्तर समझ सकते है।
"तो क्या आप उस पहचान को खोजने और उसी के अनुसार जीवन जीने के लिए तैयार हैं जो जीवन का सनातन सत्य है?"
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