ये शर्मनाक है कि अपना घर छोड़ने वाला शूद्र आज भी देश की राजनीति में अछूत है, जो अपने हालात के चलते वोट नहीं दे सकता, और न उसके लिए कोई व्यवस्था है
कुछ चिढ़े हुए लोगो ने देश को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के नाम से लोगो ने सिर्फ मुर्ख बनाया है, क्युकी इन शब्दों से वे हिन्दुओं को तोड़कर उनके नेता बनना चाहते है और नेता बने भी है, आज भी वे इन शब्दों को प्रयोग करके इन टूटे हुए टुकड़ो पर राज़ कर रहे है।
लेकिन मेरी या ब्लॉग पोस्ट ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र शब्द और उस पर होने वाली राजनीति को लेकर नहीं है।
ये भी पढ़े -
मेरा ब्लॉग इस पर है कि आज आजादी के 76 साल बाद भी शूद्र वोट नहीं दे पा रहे? वो बताता हूँ कैसे?
शास्त्रों में शूद्र का अर्थ नौकरी करने वाला, दास, चाकर या धन के बदले में कार्य करने वाला। (ऐसा मुझे अभी तक के अध्ययन में समझ आया )
तो फिर मुझे कैसे पता चला कि क्या आज आजादी के 76 साल बाद भी शूद्र वोट नहीं दे पा रहे?
इस बात को ज़रा गौर से समझिये कि -
आज भारत की आज़ादी को 76 साल हो गए है। मेरे अनुमान से देश की 20 प्रतिशत जनता या उस जनता के बच्चे किसी एक राज्य से निकलकर दूसरे राज्य में नौकरी करते है। इन लोगो का भारत की अर्थ व्यवस्था को चलाने में बहुत बड़ा योगदान होता है। क्युकी ये मेहनत करके कमाते है और खर्च करते है। लेकिन ये इतना ही कमा पाते है जितने उनके खर्चे है, या गुज़ारा चल जाए।
इससे जुड़ा हुआ एक 10-12 साल पुराना वाकया सुनाता हूँ जो विल्कुल सत्य है। -
एक बार में ट्रैन में स्लीपर डिब्बे में यात्रा कर रहा था, लेकिन उस दिन उस ट्रैन में भीड़ बहुत थी, लोग जनरल डिब्बे से निकलकर कुछ स्लीपर क्लास की फर्श पर बैठे थे, दिन में करीब 2 -3 बजे का समय हो रहा होगा।
उस समय अचानक से किसी ने पूछ लिया कि कोई त्यौहार वगैरह तो है नहीं, ये ट्रैन में इतनी भीड़ कैसे?
तो फर्श पर बैठा हुआ एक व्यक्ति बोल पड़ा कि प्रधानी के चुनाव है इसलिए।
इससे पहले कोई कुछ पूछता या बताता, मैं बीच में ही बोल पड़ा - कमाल है ! लोग वोट देने के लिए गांव जा रहे ? ये सभी लोग एक ही गांव से है ? आप सभी लोग तो बड़े जिम्मेदार लोग है।
व्यक्ति बोला - जी भैया ! प्रधान जी सबका आने जाने का किराया दे रहे है। तो हमने सोचा इसी बहाने से घर के काम भी देख आएंगे, बहुत दिनों से घर नहीं गए है।
मैंने बोला - फिर वोट किसे दोगे? क्या सोचा है?
व्यक्ति बोला - इसमें सोचना क्या है? जो इतना खर्चा कर रहा है, उसके बारे में तो सोचना ही पड़ेगा, हम सबका वोट उसी का है।
मैंने बोला - प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के वोट के लिए जाते हो?
व्यक्ति बोला - हम तो सिर्फ प्रधानी के वोट ही दे पाते है, इतना पैसा कहा है कि छुट्टी लेकर वोट देने जाए। हम लोग अहमदाबाद में कारीगरी करते है। हमें प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री से का लेना देना।
इसलिए
आज जब जब भारत में इलेक्शन का समय आता है, तब तब ये कमी हृदय को विदीर्ण करती है कि नौकरी करने वाले लोग वोट नहीं दे पाते, क्युकी इतना पैसा नहीं होता कि ऑफिस या फैक्ट्री से छुट्टी लेकर वोट देकर आये। इन महत्वपूर्ण लोगो का देश की राजनीति में योगदान न होना अपने आप में एक बड़ी भयंकर बात है।
इसलिए मैं यह आशा रखता हूँ कि आज टेक्नोलॉजी के ज़माने जब सबके पास आधारकार्ड है, स्मार्टफोन या मोबाइल है तब इन्हे किसी दूसरे राज्य से अपने प्रतिनिधि के लिए वोट डालने का कोई न कोई विकल्प अवश्य होना चाहिए।
इसलिए मैंने इस ब्लॉग tittle में कहा कि आज आजादी के 76 साल बाद भी शूद्र वोट नहीं दे पा रहे? और किसी भी सवैधानिक संस्था, राजनितिक पार्टी को इसकी चिंता भी नहीं हुए या कोई मार्ग भी नहीं निकाल पाए।
तो ये शर्मनाक है कि अपना घर छोड़ने वाला शूद्र आज भी देश की राजनीति में अछूत है, जो अपने हालात के चलते वोट नहीं दे सकता, और न उसके लिए कोई व्यवस्था है ।
COMMENTS