क्या पीरियड्स के दौरान या रजस्वला अवस्था में किसी स्त्री को घर से बाहर निकलना चाहिए या नहीं। मंदिर जाना चाहिए या नहीं, खाना बनाने को भी मना किया गया
आज मैंने एक चर्चित मीडिया वेबसाइट पर एक आर्टिकल देखा कि -
पीरियड्स में मंदिर जाना चाहिए या नहीं, जया किशोरी ने दिया ये जवाब।
जया किशोरी जी का जवाब कुछ इस तरह से उन्होंने दिया जिसे मैंने फोटो में कटिंग लगाईं है। उनका उत्तर कुछ इस तरह से प्रकाशित था -
"जब भगवान् श्रीकृष्ण ने भी रजस्वला अवस्था में देवी द्रौपदी को छुआ था तो हमें ये चीज़े नहीं सोचनी चाहिए। हमें भी समय के साथ अपनी सोच को बदलना चाहिए। लोगो ने समय के साथ इसको एक रूढ़िवादी सोच का दर्जा दे दिया, जिसके कारण कुछ लोगो ने इसमें नियम भी बना दिए। "
उन्होंने कहा कि -
जब भगवान् श्रीकृष्ण ने भी रजस्वला अवस्था में देवी द्रौपदी को छुआ था तो हमें ये चीज़े नहीं सोचनी चाहिए।
तो फिर उन्हें इस विषय को भी समझाना चाहिए कि -
इन्द्र ने अपवित्र स्थिति में माता दिति को सोते देखा तो उसके गर्भ में प्रवेश कर बालक के सात टुकड़े कर डाले।
इनमे से कौन सी बात रूढ़िवादी है? क्या वो आपदधर्म नहीं था?
खैर मैं उनके इस प्रश्न पर मैं क्या सोचता हूँ, उसे What I Think अपनी केटेगरी में देता हूँ। सबके अपने-अपने ज्ञान और उसके मंथन से उत्पन भाव।
कई पुराणों में कई बार लिखा है कि रजस्वला अवस्था स्त्री को अन्य दूसरी सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा वाली चीज़ो को नहीं छूना चाहिए, इसलिए हो सके तो उस दिन घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए।
क्यों? -
क्युकी सनातन धर्म में स्त्री को छोटा या बड़ा नहीं बल्कि शक्ति कहा गया है, यहाँ शक्ति सिर्फ नाम नहीं बल्कि यह अनंत ताक़त या पावर है।
रजस्वला अवस्था में कोई भी माता या बहन शक्ति उस समय शक्ति का पुंज होती है।
सकारात्मक ऊर्जा के संपर्क में आये तो -
यदि इस समय कोई भी माता किसी मंदिर के सकारात्मक ऊर्जा के क्षेत्र में प्रवेश करती है तो सकारात्मक ऊर्जा + सकारात्मक ऊर्जा अर्थात जीवन में उथल पुथल अवश्य होगी, जब तक आपके पुण्य है तब तक उसका असर नहीं दिखाई देगा, लेकिन बाद में उसका प्रभाव अवश्य दिखेगा।
नकरात्मक ऊर्जा के संपर्क में आये तो -
यदि इस समय कोई भी माता घर के बाहर निकलती है तो चौराहे, गली इत्यादि में लोग नकरात्मक ऊर्जा को प्रयोग के माध्यम से छोड़कर चले जाते है। कोई भी नकरात्मक ऊर्जा किसी सकारात्मक ऊर्जा से उतनी ही आकर्षित होती है, जितनी एक चुम्बक का + का सिरा - से।
ऐसे समय में उसका मूलाधार चक्र भी कभी कभी खुल जाता है। और ऐसी ही गलतियों से या अज्ञानता से कोई भी नकरात्मक शक्ति या वायु प्रवेश कर सकती है।
तो जहाँ तक मुझे जानकारी है कि गृह क्लेश और धर्म परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण आजकल यही अज्ञानता है और अज्ञानता ही माया है, कुछ सुराग देता हूँ जैसे कि -
माताओ का रजस्वला अवस्था में घर से बाहर निकलना -
लेकिन आज कल नौकरी पेशा माताएं अगर घर से बाहर निकलती है या निकलना पड़ता है तो माँ कामाख्या कवच का पाठ करके ही निकले। अगर वे बिना सुरक्षा के निकलेगी तो उन्हें चण्ड-मुंड के सैनिक अवश्य मिलेंगे। ये ब्रह्माण्ड सबका है, गलती आपकी है । जानवर का काम है शिकार करना, आपको अपनी रक्षा स्वयं आनी चाहिए।
इसलिए स्वयं शक्तिपुंज होने के कारण इन्हे खाना बनाने को भी मना किया गया है, क्युकी उस समय मस्तिक में कई प्रकार के अच्छे बुरे विचारो का कोलाहल मचा रहता है। और जिस भावना के साथ भोजन तैयार होता है, अर्थात जैसा बीज, वैसा वृक्ष या उस तरह का घर का वातावरण रहता है।
जब माताएं अपने बाल खोलकर घर से निकलती है -
माताओं को घर से बाहर निकलते समय, बालों को बांधकर ही निकले, क्युकी लोग नकरात्नक ऊर्जाओं को बीच चौराहे पर किसी वस्तु में बांधकर छोड़ जाते है। और जैसे ही इन ऊर्जाओं को खुले बाल दीखते है, भागकर उसमे छिप जाते है और आपके ब्रह्मरंध के माध्यम से आपकी सोच और शरीर कब्ज़ा करके खुद ऐश करते है, और बदनाम आप होते है।
लेकिन अगर आजकल के फैशन में भी जीना है तो माँ कामाख्या कवच, या चंडी कवच का नित्य पाठ करना शुरू कर दे। फिर आप कोई भी फैशन करे।
जब माताएं अपनी नाभि दिखाती है? -
आज कल इसे भी फैशन में लिया जा रहा है, उन लोगो के द्वारा जो चाहते है कि बचे हुए सनातनियो को भी भ्रम के जाल में लिया जाए।
नाभि पर नकारामक दृष्टि पड़ने से नाभि चक्र में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश हो जाता है। जितनी नकारात्मक ऊर्जाये होती है, सबसे पहले यही कब्ज़ा करती है क्युकी इन्हे भोग, विलास और काम चाहिए होता है।
विष्णु भगवान् की नाभि से ही ब्रह्माजी जी कमलनाल के माध्यम से प्रकट हुए, और ये सृष्टि नाभि के माध्यम से ही नया आकर लेती है, अर्थात संतति से जुडी रहती है।
खासतौर से ब्राह्मण स्त्रियों को ऐसा गलती से भी नहीं करना चाहिए, क्युकी अगर उनके कुल में कोई ऐसा तपस्वी ब्राह्मण हुआ हो जिसके पुण्य से पीढ़ी आज अच्छा जीवन जी रही हो, वो सारे पुण्य चोरी करवा सकती है। अर्थात जब आगे की पीढी बिना पुण्य के जन्म लेगी तो कष्ट मिलना तय है, वो पीढ़ी अपना भोजन कमाने में ही व्यस्त रहेगी, साधना, और धर्म का प्रचार ऐसे में याद ही नहीं रहता.।
माँ कामाख्या कवच, या चंडी कवच का नित्य पाठ अवश्य करे, इस कवच के होते हुए आपको चिंता की आवश्यकता नहीं है।
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जब माताएं बिंदी या सिंदूर नहीं लगाती है? -
इसे मैंने अभी तक कही पढ़ा तो नहीं लेकिन सुना अवश्य है कि भगवान् शिव जी ने स्वयं स्त्रियों जाति को वरदान दिया है कि अगर वे कुमकुम या सिंदूर की बिंदी शक्ति या मुझे याद करके धारण करेगी तो उनकी रक्षा वे स्वयं करेंगे।
माता की शरणागति लेकर रखे, उनका कवच और स्तुति करना चाहिए। अगर आपका भाव उनके प्रति नहीं बन रहा है तो देवी भागवत को सुने या पढ़े।
ऐसे ही पुरुषो के लिए भी बहुत सी चीज़े है, जैसे कि -
जनेऊ धारण करना
कलावा अर्थात रक्षासूत्र पहनना
सिर अर्थात ब्रह्मरंध्र को ढक कर रखना , टोपी पहनना
या ब्रह्मरंध्र को चोटी से ढकना।
इत्यादि।
तो क्या मैं उन्हें (जया किशोरी जी को ) गलत कह रहा हूँ?
नहीं, वे मेरे विचार से कथावाचक है, साथक नहीं। इससे ज्यादा मैं उनके बारे नहीं जानता। हो सकता है कि वे साधक भी हो, लेकिन उसके बारे में मुझे ज्ञान नहीं।
अतः मैं उनके किसी भी विचार या भाव के विरुद्ध नहीं हूँ, यहाँ सिर्फ मैंने अपना भाव बताया कि - मैं क्या सोचता हूँ।
बाकी तो हर कोई स्वतंत्र है अपने अनुसार जीने के लिए, फिर जैसी ज्ञान की दृष्टि, वैसी आपकी सृष्टि।
जय श्री राम
नोट - ऊपर बताई गयी जानकारी मेरे स्वयं के भाव और ज्ञान के अनुरूप है जो अधूरी या गलत भी हो सकती है। कृपया उपनिषदों और पुराणों को As it is सुनना शुरू करे। यूट्यूब पर उपलब्ध है।
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